बुन्देली दोहे
अक्टूबर 10-फरवरी 11 == बुन्देलखण्ड विशेष ---- वर्ष-5 ---- अंक-3 |
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बुन्देली दोहे रामचरण शर्मा ‘मधुकर’ |
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कछु दोहन में घाम है, कछु में गहरी छाँव।
कछु दोहा सहरी भये, कछू बसत है गाँव।।
पनहारिन अब लौट जा, इतै न कौनउँ घाट।
कूरा-करकट मल भरो, उखर गये सब पाट।।
पनहारिन जल, भर चली करकें नीची आँख।
तीन गगरियाँ सिर धरैं, दो दाबैं है काँख।।
हम कैसे इंसान हैं काट रहे हैं पेड़।
धरती ऐसी लग रई, बिना ऊन की भेड़।।
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40 टैगोर नगर, विश्वविद्यालय रोड,
ग्वालियर (म0प्र0)