जुंदइया -- बुन्देली कविता

अक्टूबर 10-फरवरी 11 == बुन्देलखण्ड विशेष ---- वर्ष-5 ---- अंक-3

बुन्देली कविता--साकेत सुमनचतुर्वेदी

जुँदईया



सबकों जी चुरात है तें वारी! जुँदईया,


मनखाँ भौत भात है तें प्यारी जुँदईया।


रूखन की ई डगांर ऊ डगांर पें,


टुनग-टुनग कुदकवें मतवारी जुँदईया।


पत्त के कौंचा संग पोर तक दिखें,


परत जबईं ऊपरें उजियारी जुँदईया।


ऐंगर कों न सुजात अंदियारे में,


तनक में मिटात रात कारी जुँदईया।


बदरई की धुतिया सें आँग ढाँक कें,


लगत है कतकारी सी न्यारी जुँदईया।


हिंचरू सी सबरें जब लिपट जात है,


पलपट सी देत है किलकारी जुँदईया।


सेई के काँटे सी गुच्च जात है,


रात-दिनां दुखत है दुखयारी जुँदईया।


उल्टी गैल चलत काये तें बता सुमन’,


भोर होत बनत जो निंदनारी जुँदईया।


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36/15 प्रेमगंज, सीपरी


झांसी-284003

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