शकुन गाँव के -- बुन्देली कविता
अक्टूबर 10-फरवरी 11 == बुन्देलखण्ड विशेष ---- वर्ष-5 ---- अंक-3 |
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बुन्देली कविता--डॉ0 महावीर प्रसाद चंसौलिया शकुन गाँव के |
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देख बहू आँगन मुँह धो रइ बिलैयाँ।
हमें लगत आज कोउ पाहुन अबैयाँ।।
चौपयाइ बाखर में गैयाँ रम्हा रईं।
राम्हत सुन गैयन कों बछियाँ टुरा रईं।।
आँगन में दूध धरो कुतिया रखा रई।
दही धरो मथनी में परोसिन भमा रई।।
जिजी मठा देउ आज रायतो करैयाँ।। देख बहू आँगन मुँह धो रइ बिलैयाँ।।
आँगन में घाम आव चकिया चला रई।
देख के परोसिन कों लाजउ न आ रई।।
बूढ़ी डुकरिया जौ झाड़ू लगा रई।
छोटी ननदिया कुँवा पानी को जा रई।।
बूँद नई घिनौची तें आज का करैयाँ।। देख बहू आँगन मुँह धो रइ बिलैयाँ।
डुकरा ने काँदी की गठरी पटक दई।
मौड़ा ने डलियाँ दो कुटिया कतर लई।
बाई ने पिरियाँ दो महुआ की भर लई।
मौड़ी ने लकड़ी की मौरी एक ल्या दई।
मगरे का कौवा जो आज का करैयाँ।। देख बहू आँगन मुँह धो रइ बिलैयाँ।
चूल्हे पै बैठी जो काम न सकेलो।
लगो बड़ी भोरई सें मौड़ा अकेलो।
बिन्नू संग लग गई सब गोबर उड़ेलो।
श्यामा उर धौरी कों लोंड़ दओ कुड़ेलो।।
अम्मारी चूल्हे को कण्डउ अब गिरैयाँ।। देख बहू आँगन मुँह धो रइ बिलैयाँ।
दुजिया तिजन कें तेल काजर लगा कें।
रोटी जुनई की दूध गुर सें खवा कें।।
कॉपी किताबें रबड़ पिंसिल सजा कें।
रजिया रफीका को संगे लिवा कें।।
जल्दी स्कूल चले घंटी अब बजैयाँ।। देख बहू आँगन मुँह धो रइ बिलैयाँ।
पुरबना ने चरबे को ढीली भैंस गैयाँ।
कलेऊ पुतिलिया ले लकुटी पन्हैयाँ।।
रमुआ ने जोती दो बीघा टपरियाँ।
भुन्सारे सें लगरओ छिन बैठो न छैयाँ।।
‘महावीर’ बेरा भइ घर कों अबैयाँ।। देख बहू आँगन मुँह धो रइ बिलैयाँ।
सानी कर पनवाँ जगेरू सब लगा कें।
दउवा मताई कों खीर सेंवई जिमा कें।।
बकरी कलेऊ नीर ननदी कों लिवा कें।
खेतन में नींदन गई किबरिया लगा कें।।
फरकत है आँख जैसें भैया अबैयाँ।। देख बहू आँगन मुँह धो रइ बिलैयाँ।
अम्मारी बता का होने तिरकैया।
छपरा पै बेल चढ़ी तोरले तुरैयाँ।।
किरिया में पालक हरीरी है धनियाँ।
मट्ठा जुनई कों दर करलो महेरियाँ।।
बहू करो जल्दी अब सबरे अबैयाँ।। देख बहू आँगन मुँह धो रइ बिलैयाँ।
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ग्राम व पो0 बंगरा, जिला-जालौन उ0प्र0