बुन्देलखण्ड-दर्शन -- बुन्देली कविता
अक्टूबर 10-फरवरी 11 == बुन्देलखण्ड विशेष ---- वर्ष-5 ---- अंक-3 |
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बुन्देली कविता--डॉ0 ओमप्रकाश बरसैयाँ ‘ऊँकार’ बुन्देलखण्ड-दर्शन |
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सीमा और जिले
जमुना और नर्मदा, चम्बल, टौंस बना रइं सीमा है।
हरी-भरी हरियल साड़ी पहने जौ बुन्देली-माँ है।
झाँसी, बाँदा, जिला ललितपुर, उर जालौन एइ में है।
दतिया, पन्ना और महोबा, छतरपुर सौ ई में है।।
गुना, शिवपुरी औ हमीरपुर, विदिशा और मुरैना है।
रायसैन, सीहौर, राजगढ़ उर दमोह सौ गहना है।।
छिंदवाड़ा, बैतूल, हुशंगाबाद एइ में सागर हैं।
सिवनी, बालाघाट, जबलपुर निर्भर बुन्देली पर है।।
संस्कृत के विद्वान और कवि
कालिदास, भवभूति हुए बाराहमिहिर गंगाधर हैं।
सदानन्द संस्कृत के मंडन मिश्र हुए विद्वत्वर हैं।।
हिन्दी के कवि एवं साहित्यकार
जगनिक ने आल्हा गाऔ तौ, तुलसी ने रामायन है।
भए बिहारी, पद्माकर, केशव सरसाए तन-मन हैं।।
कुंभनदास, गदाधर, भूषण, लाल ईसुरी जन-कवि से।
सेवकेन्द्र, श्रीमित्र, दिव्य, श्री घासीराम व्यास रवि-से।।
प्राणनाथ, भगवत, मारवन, कवि हृदयंशाह, हरिकेश हुए।
नव खाँ, आलादास, करन, जीवन, मस्तान विशेष हुए।।
भए मैथिलीशरण राष्ट्र कवि, इत वृन्दावन लाल भए।
श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी इत सुमेरू-कवि माल भए।।
तपस्वी, वीर एवं क्रान्तिकारी
आल्हा-ऊदल बड़े लड़ैया दोऊ महुबे में प्रगटे।
सिरसागढ़ मलखान उजागर, रन से कबहुँ न जियत हटे।।
छत्रसाल ने औरंग कर दइ औरंगजेबी चाल छली।
भैया की आज्ञा खाओ विष, अमरवीर हरदौल बली।।
विश्वामित्र, व्यास, पारासर तप करबे खौं टिके इतै।
चम्पतराय और सारंधा, वीरसिंह से भए इतै।।
पाण्डव के अज्ञातवास के, ठाँव आज तक इतै बने।
राठ विराट महानगरी, हीरा पन्ना में मिलैं घने।
बुन्देलों के प्राण धरोहर, मातृ-भूमि के ही काजैं हैं।
चित्रकूट सुखराम लहे, ओरछा सजीव विराजे हैं।।
विन्ध्याचल विन्ध्येल, बुन्देला कबहुँन झुकबे बारो है।
पै अगस्त-आज्ञा सिर-माथैं, अबउँ नवायैं ठाड़ो है।।
विद्वानन खौं नबै, धरम पेई जौ मरबे वारो है।
ललकारै जो ईखौं लरबे, ई से कालउ हारो है।।
लक्ष्मीबाई अंग्रेजन खाँ, खूब रगैदो छेदौ तो।
इतै चन्द्रशेखर रहकें, अंग्रेजन-भेजन भेदौ तो।।
गामा लिखो चुनौतीनामा, मल्लन चित्त गिराये ते।
ध्यानचन्द तौ फिर हॉकी के जादूगरइ कहाये ते।।
शंभुनाथ, भगवानदास माहौर क्रान्ति-सेनानी से।
श्यामलाल इंदीवर सींचौ गरौ इतइँ के पानी से।।
नदियाँ और दर्शनीय स्थल, उपज व प्राकृतिक सौन्दर्य
चम्बल, केन, धसान, बेतवा, टौंस, पहुज निराली हैं।
सिन्ध, सौन, जमदाढ़, पार्वती नदियाँ लहरन वाली हैं।
हैंई अजयगढ़ और ओरछा, अछरू बरुआ सागर है।
चित्रकूट, चरखारी, उर खजुराहो, गढ़ कालिंजर है।
रूपनाथ, बाँदकपुर, बंधा, द्रोणागिरि कुण्डेश्वर है।
नैनागिरि, कुण्डलपुर, मैहर, उदयेश्वर, गुप्तेश्वर है।
पाण्डव कुण्ड, जटाशंकर, गौरीशंकर, सोनागिर है।।
झाँसी-किला, उनाव, पपौरा, रुचिर रामवन न्यारो है।
पत्थर तक कीमती ब्रह्म ने रुच रुच जाय सँवारो है।।
वीर बुंदेले, अलबेले, संघर्षों में हँस खेलत हैं।
सरल स्वभाव, ताव आउत जब, भिड़े काल कौं ठेलत हैं।।
महुआ, मेवा, बेर, कलेवा, गुलगुच मधुर मिठाई हैं।
जिन्हें खात तौ भूलजात, रसगुल्ला बालूसाई हैं।।
निश्छल, मृदुल प्रीति पलकन में लये छबीली ललनायें।
लरज-गरज बतियाँ बल खातीं, मोहैं मन खाँ भरमायें।।
लचकन-चलन देख कैं मुइयाँ चन्दा छिप जातइ शरमा।
पीपल, साल, पलाश, नीम, बेर, खैर, गात वन की गरिमा।।
जड़ी बूटियाँ, ज्वार, बाजरा, मकइ, पिसी, जौ देवै माँ।
झिन्नन सें स्वर गूँज उठैं, बुन्देलखण्ड धरती जै माँ।।
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19, जवाहर चौक झाँसी (उ0प्र0)