खजुराये के चितेरे -- बुन्देली कविता
अक्टूबर 10-फरवरी 11 == बुन्देलखण्ड विशेष ---- वर्ष-5 ---- अंक-3 |
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बुन्देली कविता--भारतेन्दु अरजरिया ‘इन्दु’ खजुराये के चितेरे |
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चतुर चितेरे खजुराये की, रचना अमर बनाई।
उनकी काँ लौं करैं बड़ाई।।
मन देखे से मानत नइयाँ।
बेर-बेर आवै ई ठइयाँ।
खुलीं रै गईं नैन तरइयाँ, सुध बुध है बिसराई।
उनकी काँ लौ करैं बड़ाई।।
निज राजन के सुख के लानें
काम कला के सुघर सयानें।
जिनने मंदिर रचे विमानें, अद्भुद कला दिखाई।
उनकी काँ लौ करैं बड़ाई।।
शंकर जू ने काम जराये,
काम-रती पूजा खाँ आये।
चरन मतंगेश्वर के पाये, अचला अमरता पाई।
उनकी काँ लौ करैं बड़ाई।।
जिनने रची रूपसी नारी,
जोबन के मद में मतवारी
नर खाई नारी हारी, ऐसी खरी नुनाईं।
उनकी काँ लौ करैं बड़ाई।।
नारी एक रूप में देखी,
काम कला की संगी खेली।
होते भौत पातकी दोसी, निछल बात दर्शाई।
उनकी काँ लौ करैं बड़ाई।।
जुबना वशीकरन उभरे हैं,
अंग-अंग रस रंग भरे हैं।
चौरासी रति रंग धरे हैं, कउँ नईं कसर लगाई।
उनकी काँ लौ करैं बड़ाई।।
पाहन कौ सिंगार करो है,
मोह लेत मन मोद भरो है।
सबखाँ अचरज दिखा परो है, टाँकी ऐन चलाई।
उनकी काँ लौ करै बड़ाई।।
सूरज चन्दा रोज निहारै
बादर बरसें परैं फुहारै।
जी खाँ देख-देख नई हारैं, कोटन लोग-लुगाई।
उनकी काँ लौ करै बड़ाई।।
कवियन अनगिन छंद रचाये,
रीतकाल रस राज सुहाये।
इतै सजीवन है दरसाये, ऐसो देत दिखाई।
उनकी काँ लौ करै बड़ाई।।
उनने इतै कला खाँ पूजो,
ऐसो मरम भेद काँ दूजो।
मरम भेद काऊ नईं बूझो, दुनिया देत दुहाई।
उनकी काँ लौ करै बड़ाई।।
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महोबा (उ0प्र0)