इन बातन में कछू धरो नइयां -- बुन्देली कविता
अक्टूबर 10-फरवरी 11 == बुन्देलखण्ड विशेष ---- वर्ष-5 ---- अंक-3 |
---|
व्यंग्य गीत--गोविन्द यदुवंशी इन बातन में कछु धरो नइयां |
---|
(बुन्देली कहावतों पर आधारित)
कउआ कोसे से कोउ मरो नइयां।
इन बातन में कछू धरो नइयां।।
उन्ने कइ ऊँट बिल्इया लै गई,
काये जूं लै गइ व कैसें लै गई।
हां जू लै गइ उठा कै लै गई,
कोउ ने कछू करो नइयां।
इन बातन में कछू धरो नइयां।।
ऊँट की चोरी नुहर के न होवे,
चाय कोउ कितनो चतुर चोर होवे।
चोरन के घर खेती हो रई,
चोरी से कोउ बचो नइयां।
इन बातन में कछू धरो नइयां।।
डुकरा खां खटिया से नीचे उतारो,
गोबर लिपा के धरती पै पारो।
ठठरी पै धरके मरैला में डारो,
मरेला में डुकरा मरो नइयां।
इन बातन में कछु धरो नइयां।।
कउआ कोसे से कोउ मरो नइयां।
इन बातन में कछू धरो नइयां।।
------------------------------------------------------
यदुवंशी निवास
राम मन्दिर के पास, पन्ना (म0प्र0)