आ गओ बसन्त -- बुन्देली ग़ज़ल

अक्टूबर 10-फरवरी 11 == बुन्देलखण्ड विशेष ---- वर्ष-5 ---- अंक-3

ग़ज़ल--श्याम बहादुर श्रीवास्तव

आ गओ बसन्त




लीक छोड़ मन हमाव काए चल उठो,


कौन चल उठी हबा कि मन मचल उठो।


झूल रहीं बिरछन कीं बाँह बल्लरीं,


हाय! मदन छाती पै दार दर उठो।


कोइल की कूक, जिया बिलबिलात है,


कीन्सें कयँ आम अपँव फूल-फल उठो।


चूमत मुख फूलन के मधुप मनचले,


देख बदन ईरखा की ज्वाल जल उठो।


जाब कितउँ तौ बसंत देख हँसत है,


जान अकेली हमें आगी उगल उठो।


आ गओ बसंत श्यामकन्त अन्त हैं,


बर्फ भओ गात बिरह ताप गल उठो।।


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