दोऊ पच्छ: पूनों अमास -- बुन्देली कहानी

अक्टूबर 10-फरवरी 11 == बुन्देलखण्ड विशेष ---- वर्ष-5 ---- अंक-3

बुन्देली कहानी--डॉ0 लखनलाल पाल

दोऊ पच्छ: पूनों अमास



ऊ लौट आओ तो दिल्ली से; दिवारी कौ त्योहार मनाबे के लानै। दिवारी तौ सब जंहगा मनाई जात। ऊ त्योहार उतऊँ मना सकत तो पै गाँव की दिवारी के मनाबे कौ खास करन मौन चराबो हतो। बारा सालें पूरी हो गई तीं आखिरी तेरवां साल रह गई। ई बारा सालन के बीच में का-का नईं घटो, और का-का नई बढ़ो, यौ ओखे जेहन में आझऊँ उतरा रहो। आखिरी साल मौन मथरा-बिन्दराबन में चराई जैहै। बारा साल के इकट्ठे मोर पंख जो बड़े जतन से एक-एक पंखा बीने ते उनकौ अब मूठा बन गओ है। बड़े भोरइयाँ ऊ खेतन से, परती में से पंख ढूँड़-ढूँड़ खें ल्याउत रहो। ई साल वे सब जमना जी में बहा दए जैहै। बारा सालन में ई मूठा से ओखें मोह हो गओ है। जमना जी के बहाए की याद में मन बुझ-बुझ जात। पै का करे येई परम्परा है। सब कोऊ निभाउत सो ओऊ निभा लैहैं। ओेखौं मन कसक उठो। लोई (गाय की पूँछ के बारन की बनी रस्सी) ओऊ जमना जल में सिरा दई जैहै। लोई खें पहलूँ पहल गरे में डारे सें ओखे बार बहुत गुच्चे ते। येई लोई तो मौन साधो की प्रेरणा हती। वे पच्चीस लरका इकट्ठे मौन चराबे खें ठाड़े भए ते। गुल्लू माराज (मौन कौ साथी) बछिया लए के बाद भूल से बोल गओ तो। संग के सब मौनियन ने डंड के रूप में अपने-अपने मूठा लदवाये ते। गाय कौ थोरौ सौ गोबर पानी में घोर खें आचमन करवाओ तो। जादा बोलत बाले गुल्लू माराज की हर साल येई दसा भई। लाफ्टर चैनलकी नाईं माराज दिन भर अपनी आदतन से सबरे मौनियन खें गुदगुदाउत रहे। दिन डूबे बछिया छुटावे के बाद तौ सब मौनिया गुल्लू की हरकत बताउत-बताउत पेट फुलै लेत्ते। मौन साधो के समै जरूर वे बेआवाज हँसत रहत ते। हँसत का मुस्कात रहत ते। नई बनियान, पैजामा या धोती तथा हाथ में मोर पंख लैंय मौनियन खें दिखखें किसन कन्हइया की याद आ जात। आखिरी साल में ओखें या खुसी है कि जीवन में एक पुन्न कर लओ। ईसुर की किरपा सें येऊ साल बिना बिघन बाधा के पूरी हो जावै सो सब बन गओ। ओने सब तइयारी कर लई। बजार से मिसरी नारियल, खीलें और जवा मौन पूजा के लानै खरीद ल्याओ। साबूदाना और सक्कर ऊ अपने उपास के लानै खरीद ल्याऔ। अब ओखे लानै घर की सफाई व पुताई रह गई ती सो अभै दो दिना कौ टैम है ओऊ हो जैहै। दो घर कच्ची माटी के बने हैं। खपरैल की छत में मकड़यारौ अपनौ पूरौ सामराज फैलाए हैं। गेरखें कच्ची माटी की बौन्ड्री बनी है। बौन्ड्री खपरन सें छबी है और भीतर बाहर से माटी गोबर के गुबरा से गुबरी है। चार महीना के पानी बरसे से दिवार ने धपरा छाँड दए। ऊ उन धपरन खें हुमसा खें फिर से गुबरा से गुबर है फिर ओखे ऊपर कलई पोत है। गिरस्ती के नाव पै घर में कछू डबला-डबुलियां और टूटो सो एक बक्सा है। टूटे से बक्सा खें दिखखें औखौ जी खट्टया गओ। औखो मतलब बल्लू....बल्लू माने बालादीन बल्दियत सुन्दरे बापू यानि कि सुन्दरलाल बापू।



बक्सा खें दिखखें बल्लू को मूं करवा गओ। बक्सा बहुत पुरानौ है। बाई (अम्मा) बताउत ती कि जब मो चलाव भओ तो तब नाना ने दो रुपइया में खरीद खें दओ तो। पहलूँ चीजें कितनी सस्ती हती। बल्लू सोचन लगो कि पहलूँ मुद्रास्फीति ऊ तो कम हती। ऊ समै कौ हजारी आज कौ करोरपति बरोबर भओ। बाई ने बक्सा जीवन भर सहेज खें राखो। ओखी एकाद नई धुतिया की हिपाजत येई बक्सा करत रहो। सुधरइया आए पै बाई ने कइयक देर सुधरवाओ। बक्सा कौ सब रंग उड़ गओ तो। ऊ धुबो-धुबो सौ लगत। बाई रोज बक्सा खें अपने अंसुअन सें धोउत रही। बा रोज काए रोउत पहलूं हम नादान भइया-बहन खें ओखौ रोबो एक रहस हतो। कभऊँ हमऊँ बाई कौ संग दै देत ते। जौन दिना हम बाई कौ संग दै देत ऊ दिना बक्सा और ऊजरौ हो जात्तो। हमाऔ बापू हठीलौ और जिद्दी हतो। पै हतौ बड़ौ धारमिक। बल्लू की अचानक ऊ बक्सा में रुचि बढ़ गई। काए रुचि बढ़ गई एखे दो कारन हते। एक कारन बाई और बापू की सुरत हती और दूसरौ कारन ऊ बक्सा पै गिरे ओखे अबोधपन के अंसुआ। ऊ अंसुअन में ऊ अपनौ बालपन तलासन लगो। बल्लू ने खपरैल की छत कौ मकड़यारौ झारबो बन्द कर दओ। ओनै ने बक्सा खोल लओ। बक्सा में फटे पुराने उन्हा लत्ता भरे ते। एक पुरानी सरट बल्लू की ऊ बक्सा में धरी ती। बापू कौ कुरता, बाई की धुतिया के अलावा बापू की एक फोटूअऊ धरी ती। बक्सा की येई पूँजी हती। बापू के पिचके गालन कौ मू निस्तेज हतो। फोटू में उनकौ पीरौ कुरता और माला चमक रई ती। या बात बल्लू खूब जानत है कि जब बापू की फोटू खिंची होहै तो बापू खूब खुस भओ होहै, पै खुसी की झलक ऊ गरीब के मूँ पै बिलकुल न हती। फिरऊँ फोटू में बापू ओखें अच्छौ दिखो। बापू और बाई के जब-कब के विभाजन में ऊ बरहमेस बाई के संगे रहो। बापू की आदतें बल्लू खें अच्छी नई लगत ती। बल्लू, बापू के एक पहलू पै सोचततो सो ओखें अंकगणित में बापू कभऊँ पास नईं भए। अगर बल्लू दूसरे पहलू पै विचार करतो ता हो सकत तो ऊ बापू खें कछु समझ पातो। पाठकन खें मैं बल्लू के बापू के दोऊ पहलू बताएं देत। अगर एकई पहलू पै कहानी लिखी जैहै ता बल्लू के बापू और ओखी बाई के साथ न्याय न हो पाहै। हाँ तो पाठको कहानी गौर से पढ़ियो।



बल्लू के बापू की कहानी



बल्लू के बापू कौ पहलौ पहलू उनकौ धारमिक होबो हतो। बल्लू ने बताओ तो कि हमाए बापू ने चार गुरु बनाए ते। उनके पहले गुरु ते श्री श्री 1008 स्वामी सरवानन्द जू जो सिवजी के परम भगत ते। अगड़बम्ब सिवजी की पूजा में वे रात दिना डूबे रहत ते। स्वामी जी बड़े चमत्कारी हते। सूखा की साल में उन्नै कई गाँवन में अपनी जोगसिद्धि सें पानी बरसाओ। बापू के सामूँ तो न जानै कितने चमत्कार करे ते। मसलन लुगाइयन के पलना भरे, जमीन जैजाद के झगड़ा निपटाये, जमीन में गड़ो धन बताओ पै कई आदमियन के भाग में धन नई बदो तो सो उन्हें धन न मिलो। माटी के कई गगरा मिले जिनमें या तो राख भरी मिली या सांप बिच्छू बैठे मिले। बापू उनके भगत हो गए और गुरुदच्छिया लैखें उनके परम चेला बन गए। सोउत होय चहाँ जगत होय उनके मू सें स्वामी जू कौ नाव कढ़त तो। मौका -बेमौका बापू मंजूरी छोड़ खें आसरम में उनके दरसन करखें किरतारथ होकें आउत ते। पै यौ हरामी कलकाल भगतन की बरहमेस परिच्छा लेत। पता नई बापू के मूंड़ पै कलकाल बैठ गओ कि भगवान ने परिच्छा लेंय के लानै बिना कौन्हउ कारन के बापू खें स्वामी जू के आसरम में पहुचा दओ। उतै कौ माहौल दिखखें बापू के पावन तरे की जमीन सरक गई। दो बइरें आसरम में किड़ी कों-कों कर रई ती। वे एक दूसरे खें सौत-सौत कहखें ऐसी गारी दै रई ती कि कौन्हउ निठल्लऊ सुनतो ता ओऊ लजया जातो। ऊ बइरन की ईरखा कौ कारन स्वामी जू हते। स्वामी जू कौ यौ रूप दिखखें बापू कौ भूत उतर गओ। बापू की धरमचरचा कौ रस बेस्वाद हो गओ। सिव बिसनू की गूढ़ कथाएँ जिनसें बापू के आनन्द की झिर खुल जत्ती, वे झिरें अब सूखन लगी। बापू के भक्ति रस कौ मानसरोवर रीचन लगो। कीचड़ ने उनकौ जीवन लिजलिजौ बना दओ। येई लिजलिजेपन में ऊ अपनौ सन्तुलन खो देत्तो। कभऊँ बल्लू पै ता कभऊँ बल्लू की बाई पै खिरझया जात्तो। बापू सिर्रयानो सौ रहन लगो। आदमी रसीलौ तो होतई है। बिना रस वालौं आदमी ठूंठ मानो गओ। कौन रस केखें झिरन लगै या ओखे सुभाव पै निरभर करत। जेखें सिंगार रस प्यारौ लगत ओखें सबरी दुनिया रसीली दिखात और जेखें बीर रस प्यारौ लगत ओखें बीर पुरखन की बीरता बखानत में साजी लगत। जेखें चुखरकटयाई साजी लगत ऊ चुखरकटी करें खें नई मानत, फिर भलई चहां पन्हइया घलैं। गुंडन खें गुंडई के रस कौ स्वाद भलौ। राजनीति कौ रस तौ छोड़ई देव, यौ रस सब पै भारी है, या यौ कहौ कि ई रस में सबरे रस हिरा जात। सांत सुभाव के आदमियन खें भक्ति कौ रस ठीक सें पच जात। पै अपच होय पै ओई के भीतर कौ सैतान अपने डहना फुलैउन लगत। बल्लू के बापू कौ सैंतान अपने डहना उचकाउन लगो। अब ऊ तनकई में बल्लू और ओखी बाई पै गुस्सया जात। ओखे मन में दुन्द हतो सो ऊ बरोबर अपने दुन्द सें लड़त रहो। ई दुन्द सें बापू जीत गओ। ई जीत कौ कारन हतो समाज में खुली आध्यात्मिक दुकानें। बापू जगन्नाथ गुरु के नगीच पहुँच गए। अब बापू चौकन्नौ हतो। तुरत-फुरत के काम से बचन लगो तो बापू। खूब ठोंक बजा खें उन्नै दूसरौ गुरु बना लओ। कछू दिनन में बापू खें अपने गुरु कौ अहंकार खटकन लगो। उन्हें अपने गुरु में भक्ति कम रौद्र रूप जादा दिखो। बापू खें उनकौ अहंकार न पचो। वे हंरा-हंरा वहाँ सें खिसक आए। बापू की सबसे बड़ी परेसानी हती कि वे पढ़े लिखे न हते नंईतर उन्हें किताबन सें कछु मिल जातो। खैर चौथे गुरु लौं आउत-आउत वे इकथिर हो गए ते। चौथे गुरु उनके मुहल्ला के पंडित रासबिहारी चौबे बने। वे एक दिना में हजार माला टारत ते। बापू ने चौबे जू खें गुरु बना लओ। सबसें पहलू उन्नै बापू खें एक माला दई और गुरुमंतर बापू के कान में सुनाओ -ऊँ भूर्भुवः स्वः तस्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।दो-तीन दिना के अभ्यास सें बापू खें मंतर मूखातर याद हो गओ। वेदन कौ आदि मंतर पाखें बापू हुलस गओ। ई मंतर के पाठ सें बापू के चित्त में सान्ति मिली। अब बापू होन वाले धारमिक अनुष्ठानन में खूब भाग लेन लगे। ई अनुष्ठानन में बड़े-बड़े बिद्वान आउत ते। बिद्वानन के मूँ से सुनो जीवन सार ने बापू के जीवन की दिसा बदल दई। भटके बापू ने लैन पकर लई। अब मैं भटको बहुत गुपालवाली बात खतम हो गई ती। कितनौ आत्म सन्तोष मिलत तो उन्हें ई मंतर सें। न जाने कित्ते आदमी जुरत चले गए।



उनको अब एक आध्यात्मिक परिवार बन गओ तो। ई परिवार में अधिकतर नौकरी पेसा सिच्छक ते। बीच-बीच में वे आपस में कारकिम कर लेत्ते। हरेक कारकिम में बापू अंगाऊ, फिर चहाँ मजूरी छोड़ने परै, चहाँ घर। बापू मजूर आदमी सो मजूरन वाले सब काम उनके हींसा में अपने आप आ जात्ते। वैसे वहाँ ऐसी समानता हती कि कोउ काम मंजूरी वालौ नई मानो जात्तो। सबसे बड़ी मानव सेवाहती। हल्के-बड़े कौ सब भेद उतै खतम हतो, घर में चहाँ बनो रहाय। वे सब एक मालिक के मजूर हते। पै कभऊँ-कभऊँ झक्क उन्हा जरूर ई सबमें खलल डार देत्ते। झक्क उन्हन की जहाँ खें उंगरिया उठी वहाँ के सब काम हो जात्ते। धरम-करम के मामले में वे जादा जानत ते सो उनकौ मीठौ आतंक बापू जैसन पै फोर कर जात्तो। बिछाई तखत, माइक उठाबो-धरबो जैसे कामन खें बापू ऐसी लगन सें करत तो कि दिखत वाले ओखी बड़ाई करे सें अपने आप खें रोक नई पाउत ते। बापू तौ भगवान कौ काम करत सो चहाँ ओखी जान चली जाय, एखी का परवाह? ओई ने जीवन दओ अगर ओई के काम में जीवन चलो जावै ता कौन सी हानि है? कौन्हऊ हानि नहिया, लाभई लाभ है। चन्दा दए में बापू बरहमेस आंगू। चंग कौ सौकीन बापू भगवान कौ भजन बड़ी तल्लीनता सें गाउत। कभऊँ इस्टेज मिल गओ ता ऊ भाव विभोर हो जात्तो। वेद पुरानन पै, समाज में फैली कुरीतियन पै वहाँ घंटन चरचा होत्ती। ई कुरीतियन ने समाज खें बिगार दओ। सबने समाज में फैली कुरीतियन खें मिटाबे कौ बीरा चाब लओ तो। वे पच्छिम की सभ्यता से बापू खें चौकन्नों करत रहत ते। अनपढ़ बापू पच्छिमी सभ्यता खें साकार रूप में बड़े-बड़े निउ (नाखून) वाली सूपनखा मानत ते या बड़े-बड़े बारन की भुतनी। भुतनी और सूपनखा बापू के दिमाग में पूरी तरां से बैठ गई ती। निराकार चीज साकार रूप में कैसे दिखा जैहै सो बापू खें पच्छिमी सभ्यता की भुतनी कभऊँ नई दिखानी। पै अग्यात भै सें बापू दांदस जरूर पालें रहो। जब कभऊँ भै जादा लगन लगत तो ता बापू मनई-मन ऊँ भुर्भुवः स्व.... ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय....या ओखे कुल देहुरा जुन दिवार में थाप लए ते उनकौ सुमरन कर लेत्तो। बापू कौ सबरौ भै भग जात्तो। किताबन की लिखी बातें ऊ जुन अपने संगियन सें सुन लेत्तो वे बातें सब कहूँ बताउत तो। घर में बापू अपने लुगाई लरकन खें समझाउत तो। एक बात और बापू खें खुस करें रहत ती कि संगियन के घर सरगजैसे हैं। सबके इतै अमन चैन है, पूरौ घर एक सूध में है, येई खुसी जब ऊ अपने घर में ढूड़त तो ता दूर-दूर लौ वा खुसी नई दिखात ती। ऊ भगवान की इत्ती सेवा करत तोपै भगवान ओखौ तनकउ खयाल नईं करत। आध्यात्मिक परिवार वाले कहत कि संसकार डारौ, संसकारन सें घर सरगबनत। संसकार कहूँ दुकानन में तो मिलत नहिया है जुन बापू दो दिना मंजूरी कर खें खरीद ल्याबैं। कोऊ कहत संसकार जलमजात होत। जे बातें सुनखें बापू खें यौ लगन लगो कि अबकी देर कौ जलम अकारथ गओ। अब कहूँ और जलम लैहौ ता संसकार सुधर है। अब का होत? ई समाज में तौ नारद जैसी गिनती चलत। चहाँ एक से गिनौ, चहाँ आठ सें, सब अंक आठई होत। ई जलम के संसकार आंगू जलम में काम आहै। ई फारमूला में बापू पूरौ बिंध गओ। संग बालन खें भगवान ने सब कछु दओ, सरकारी नौकरी, भरो-पूरौ परिवार। उनके लरकऊ लैन सें लगत जा रए। मंजूर कहूँ न मिलै ता बापू डूँड़ पै डरे। छिरिया कैसो कान पकरखें कहूँ लिबा जाव। बापू खें टोंकने नई परत, घर कैसो काम करत। मानव सेवा सबसे बड़ी सेवा। कहू ईसें बड़ी सेवा होत है? बापू ऊपर बालें से डिरात। ओखे काम में कभऊँ गफलत नई कर सकत। डर इंसान खें महान बना देत। बापू मानत है कि सिद्धार्थ ने आदमियन खें दुख से जूझत दिखो। वे सजग हो गए। दूसरन खें ई दुख से कैसे बचावै, वे दिन रात गुनन लगे। संसार खें दुख से बचाबे के लानै वे कित्ते लड़े हौंहैं अपने दुंद से? भरो-पूरौ घरबार को छोड़ सकत? कोऊ नईं। सिद्धार्थ ने छोड़ दओ। प्यारी दुल्हनियाँ, लाड़लौ लरका, सबरौ राज। घर में बैठ खें ई लड़ाई सें पार नई पाओ जा सकत तो। गहन साधना से सिद्धार्थ बुद्ध हो गये। करुना, दया, अहिंसा, इकछाओ कौ दमन आदि ये हतयार मौत के लानै कारगर सिद्ध हो गए। लोभ, स्वारथ, जैसे बैरी के भगे सें दुख अपनौ रोबो दूसरन के सामूँ रोउन लगो। रूढ़ियाँ, कुरीतियाँ, हल्के-बड़े कौ भेद एक झटका में टोर दओ बुद्ध ने। यथास्थिति बाले बिलबिला परे। दुनिया में बुद्ध कौ डंका बज गओ। बापू खें थोरी-थोरी जानकारी सब कछू की हो गई ती। अपनी बात सिद्ध करें के लानै वे कहूँ खें ढड़क जात्ते। सब एकई बात तो है। सदघिर्रा कौ डंका बापूअउ ने बजाओ। बापू को भींजो डंका बाहर तो बुदबुदा जात्तो पै घर में डंका की आवाज पूरी तरां से दब जात्ती। बापू की लुगाई चोर सौ लरका चोरी सीक गए। बापू घर में संसकारन की खूब ढपली बजाउत पै घर की करकस आवाज में ढपली भौं बोलजात। कोउ बापू की सिखावन सुनै तब न? सुनतई नहियां कोऊ। पूरौ घर कान में पाल्हा लगाएँ तो। वे सोचत ते कि कहूँ धोके में संसकार कान में घुस गए ता ये तौ खेलई -बेल कर दैहैं। जानबरन खें पानी पिबाबे के लानै तला तक लै जाओ जा सकत, अगर वे पानी न पीहैं ता जबरई थोरी पिबाओ जैहै। येई दसा बापू की और ओखे घर की हती। बापू तिलमिला उठत तो। सबके सरगजैसे घर ओखे जेहन में उतरान लगत ते। ओखौ पूरौ घर नरक, राच्छसन कौ डेरा।



बापू चतुर आदमी है, या बात ओऊ मानत रहो। ओनै अपनी पूरी कमाई लुगाई-लरकन खें कभऊँ नईं दई। कौन्हउ सामान की जरूरत परी ऊ खुद ल्याओ। रुपइया ऐसी जंहगा धरत तो कि कोउ नईं जान पाउत तो। बापू खें अभई कछू दिनन सें अपनी चतुरई पै संका होन लगी कांए कि ओखे धरे रुपइयन में से कभऊँ सौ रुपइया कम ता कभऊँ दो सौ कम होन लगे। जैसई आदमी की उम्मर बढ़त जात ऊ ऊसई बिसरा होत जात। ऊ येई समझत तो कि स्यात रुपइया इतनई हते। बापू खें ऊ दिना कर्रौ झटका लगो जब ओखे सबरे रुपइया एकदम सें गायब हो गए। ओखे पाँवन तरे की जमीन सरक गई। ओनै रुपइया भगवान की फोटू में धर दए ते। बापू ने फोटू के पाछूँ एक कागद लगा खें मोमिया चढवा लओ तो। फोटू और कागद के बीच में बापू रुपइया धर देत्तो। अब बापू खें घर कौ हरेक ससद्द (सदस्य) अपराधी दिख रओ तो। ओनै लुगाई-लरकन खें एक छियांव सें धुनबो सुरू कर दओ। किशोर बल्लू टूट गओ और सब जुरम रान दओ। बल्लू ने सातिर चोर की नाई सब रुपइया ठिकानै लगा दए ते। बापू ने अपनौ करम ठोंक लओ। या बात हींग की गंध की नाई सब कहूँ फैल गई। आध्यात्मिक परिवार के बीच में ओखे लुगाई लरका की खूब थुक्का-थाई भई। बापू सें सबकी सहानुभूति गढ़या गई। महतारी ने करम ठोंक लओ। लौंडा खें सौ दो सौ की जरूरत हती तो मोरहई से माँग लेतो। मोई और ई नाटपरे ने जुगाड़ मेट दई।



दृढ़ निस्चयी बापू ने आध्यात्मिक परिवार में जीवन कौ आधार पा लओ तो। और चीजें तो छनिक है। संगियन ने समझाओ कि साधना भिस्ट करें के लानै राच्छस बाधा डारत रहत। भगवान बरहमेस भगत की परिच्छा लेत। बापू खें समझ में आ गओ। अब परिवार के भिस्ट होबै कौ अपराध बोध ओखें नई हतो। जब कभऊँ ऊ एकांत में सोचत तो कि राच्छस सिरफ मोरहई इतै काए बाधा डारत, और कोऊ के इतै राच्छस काए नई जात। ईखौ समाधान बापू के पास नई हतो। फिरऊ बापू ने कर्रौ जी कर लओ कि राच्छस कितनऊ बाधा डारै, अब मैं अपनी साधना से न टर हों।



बल्लू की कहानी



दुबरौ-पतरौ बल्लू चड्डी-बनियानई में इस्कूल जान लगो। मास्टर ने ओखें कई देर इस्कूल से भगाओं कि साजे उन्हा पहर खें आ। घर में फटी पुरानी कमीज डरी ती (कौन्हऊ की उतरान) सो ऊ ओई पहर खें जान लगो। बल्लू बचपनई से मन कौ मौजी हतो। जब इस्कूल में नई पढनै सो ओई चड्डी बनियान में पहुँच जात्तो। मास्टर डिरेस पहरें के लानै बल्लू खें घरै पठै देत्ते। घर पहुँचो बल्लू फिर आउत इस्कूल? राम कहाव, ऐसई बिच्चा-खुच्ची पढ़खें ओनै आठ पास कर लओ। बाप की दीनता की छाप बल्लू पै साफ दिखात ती। कभऊँ जूता नहियाँ, ता कभऊँ पेन्ट नहियाँ। पेन्ट है ता पोंदन पै फटो, कमीज पछाऊँ सें मँजरी। अब ऊ इतनौ बड़ौ हो गओ तो कि अपनी हैसियत खूब कसखें जानन लगो तो। बापू कौ बीस दिना काम, पाँच दिना बिना काम कौ, बचे पाँच दिना सो वे भगवान के नाम के। नून तेलई में पिरान कढ़े आउत ते, बल्लू खें सजवो संवरबों कहाँ धरो तो। बापू के हींसा में बिसवा भर जमीन न हती। काऊ ने बटाई खें बै दई ता महतारी नींद गोड़ लेत्ती सो कछू खरचा चल जात्तो। लरका की पूरती करे के लानै ओऊ मंजूरी खें जान लगी। दो बिटियाँ तीन लरका हते बापू खें। बड़ी मौड़ी कौ तो जैसे तैसे बापू ने ब्याव कर लओ तो। हल्के लरका नंग धड़ंग हमजोली के लरकन में खेलत रहत ते। भूक लगी सो बगल वाले घर की दाई के इतै महतारी रोटी धर जात्ती। लरका उतई खा पी लेत्ते। अब बल्लू खें दरजा नौ में पढ़नै है सो बापू ओखें कसबा के कालेज में पढ़ाबे की सोचन लगो। साइकिल की पोबलम हती। ई पोबलम खें एक संगी आध्यात्मिक भइया ने पूरी कर दई। बापू ने पुरानी साइकिल की मरम्मत करवा लई। संकोची बापू खें कोऊ नहियाँ नई करत तो। बाप महतारी की कड़ी मेहनत सें बल्लू कौ एडमीसन और डिरेस किताबें खरिद गईं। कछू दिनन से बापू बाई कौ मन मिलन लगो तो। ऐसौ लगन लगो तो कि बापू कौ घर सरगकी नींव पर ठाड़ो हो रओ है। घर में एकता की लम्बी डोर खिंच गई ती। दोउअन की मंजूरी के ठीक रुपइया घर में आउन लगे। बल्लू नओ लरका, ई उम्मर में न जाने कितनी इकछाएँ जग उठत। एक इकछा ओखी मोबाल की हती। कभऊँ मामा कौ, कभऊँ बुआ कौ तो कभऊँ बहन के इतै से फोन आतइ रहत। बगल-बालन के पास मोबाल है सो उतईं बात हो जात्ती। अभाव आदमी खें समै सें पहलूँ बुद्धिमान बना देत। अभावन में पलो बढ़ो बल्लू उम्मर सें जादा चतुर हो गओ तो। दिन में बहन के सासरे से फोन आओ। बल्लू ने रिसीव कर लओ। बहन ने दिन डूबे बाई और बापू सें बात करें खें बोल दओ। बल्लू येई ताक में हतो सो फोन बाली बुढ़िया से उरझ गओ। बुढ़िया ने फोन कभऊँ नई छुओ पै ओखी बना-बिगरी पै बहुत ध्यान देत रही। कोऊ ने मोबाल के उल्टे-सूध बटन दबाये ता बा लाल हो जात्ती। बल्लू ने मोबाल के दो-तीन बटन दबा दए। बुढ़िया बल्लू पै खिरझया गई। बल्लूअऊ बुढिया पै दनदना गओ। फोन सोने कौ आय का रुपइया मोई बहन के लगत ओमें तुमाव का जात।बल्लू की बातन से बुढ़िया खें आगी छुब गई-असल बाप सुन्दरा कौ होत ता मोय इतै फोन के लानै न आइए।ओऊ ने लापरवाही से कह दओ-हओ न आहौं।अब का है, बल्लू ने पूरौ जाल बिछा लओ तो। बापू नाव की मछरिया खें फंसें भर की देर हती। रात के आठ बजे फिर फोन आए पै डुकरिया ने सूधी नहियाँ कर दई। बापू ततोस में आ गओ। बल्लू कल मोबाल खरीद ल्याइये, चहाँ जै हजार कौ आवै। बापू की गरमी बढ़े से बल्लू खुस हो गओ।



बल्लू खें पढ़ाई और किताबें काल सी दिखात। जब ओनै दरजा आठ तक कछू नईं पढो तो अब का समझ में आहै। कमजोर मुन्यात पै महल ठाड़े नई हो पाउत। मुन्यात मजबूत तौ करनेई पर है। बल्लू कालेज रोज जात पै ऊसई जैसौ ओखौ नेम हतो। बापू समझत तो कि लरका में संसकार परन लगे। घर में बरजित चीजें गुटका, बीड़ी, बल्लू धकाधक चलाउन लगो। दो एक देर ठेकऊ पै जम गओ। लुंगा भइयन के संग में बैठखें गोसऊ खूब खाओ। ई सब चीजन में कितनौ मजा है, ओखें खूब समझ में आ गओ। बापू जानै का ऊटपटांग बकत रहत। सैंके-मैंके उल्टी सूधी मसकत रहत। बापू खें लगत कि भगवान ओखें सबसें पहलूं मिल है। हमाऔ बापू है चूतिया, बड़े आदमी भगवान खें पहलूँ लपक लैहैं। दारू में असलियत कभ जात, फिर चहाँ कोउ होवै। चहाँ औखौ बापू होवै, चहाँ गाँव कौ कौन्हऊ दबंग। लात पन्हइयन की का चिन्ता। सराबी सत्यान्वेखी होत। यहाँ बापू खें अपनी पूजा पै, अपनी साधना पै गरब होन लगो। ओऊ कौ लरका पढ़-लिख खें नौकरीपेसा आदमी बनहै। मोय अधूरे काम खें आंगू बढ़ा है। हालत ऐसी हती कि लरका खुस, बाप खुस। लरका की खुसी में और बाप की खुसी में जमीन-आसमान कौ अन्तर हतो। अगर ये दोऊ खुसियाँ संगै मिल गई तौ....ऐसी कल्पना बल्लू तौ नई कर सकत।



बाप बेटा की ई समानान्तर खुसियन में तिरयक रेखा की चुगलखोरी ने एकान्तर कोण बना दए। मतलब जितने अंस की बापू की साधना, उतनई अंस की बल्लू की आबारागर्दी। तिरयक रेखा सें बापू की चाल बदल गई। बापू कोणन के बीच में केन्द्रित हो गओ। ओखें ई बात कौ बिसवास कम भओ फिरऊँ एक दग्धा तौ भीतर बिड़ई गई ती कि बल्लू बिड़ी गुटका करन लगो है और बातन की जानकारी ओखें हती कि नई या भगवान जानै। बापू खें अपने संसकारन पै भरोसौ हतो कि ऊ लरका के बहके कदम लौटा लैहै।



दिन डूबें बापू की पाठसाला सुरु हो गई। ऐबन सें दूर रहो चहिए। या पच्छिमी सभ्यता आदमी खें बौरया देत। हमेसा ईसें दूर रहाव। अचानक बापू की जेब में डरो मोबाल टुनटुना परा, बापू के बखान में बाधा आ गई। बल्लू हँस परो-बापू पच्छिमी सभ्यता तुम्हाई जेब में मिमया रई।बापू कौ क्रोध भड़क उठो। पहलूँ बापू ने फोन रिसीब करो-पैसा-पैसा करती है, तू पैसे पै क्यों मरती है, एक बात मुझे बतला दे तू, रब से क्यों नहीं डरती हैइस गाने को सबक्राइब करने के लिए एक दबाएँ। बापू ने गुस्सा में फोन ऑफ कर दओ। बापू कौ पारौ चढ़ गओ। एक तौ ई गाना सें, दूसरौ बल्लू की हरकत सें। आज ओखौ लरका ओई खें तिनगाउन लगो। बड़े-बड़े आदमी तो ओखी इज्जत करत...संग में बैठारत। यौ कल कौ लौंड़ा मोखें कहत कि पच्छिमी सभ्यता जेब में मिमयात। पच्छिमी सभ्यता सें तो बापू ऊसई डिरात। ई क्रोध और भै ने मिलखें बल्लू की दुरदसा करवा दई। बापू लट्ठ लैखें परो। बल्लू खें तरे से ऊपर लौं सोढ़ दओ। महतारी बीच में परी सो दो-चार ठौ लट्ठ ओऊ के हींसा में पर गए। सबरें लरकन-बच्चन कौ कउआ रोर मच गओ।



बल्लू ने फोटो की धूरा पोंछी। मो बापू धारमिक हतो ई में कोऊ संका नई हती। बापू लोक-परलोक में बहुत विसवास करत तो। जेमें सबसें जादा खटका ओखें परलोक की हती। परलोक सुधर जाय। हम पै ओनै कभऊँ ध्यान नई दओ। न तो कभऊँ ढंग सें कपड़ा मिले, न कापी किताबें और न खाबो पीबो। संग के लरकन खें सजो-धजों दिखखें उनके सामूँ मैं कितनौ हीन हो जात्तो। मैंनें भुगती सो महीं जानत। बिड़ी, गुटका, दारू तौ मैंने येई हीनता दूर करें के लानै सुरू कर दए ते। अगर कोऊ आदमी की औकात दस हजार रुपइया रिन चुकाबै की होबै और ओखें मूँड़ पै पाँच लाख कौ रिन धर रहबै ता ऊ चुकाबे में आलस कर जात। कहाँ लौ चुकाहै, चुकनैहै नहियाँ सो ऊ अपने सौक पूरे करन लगत। येई बात मोई हती। बापू ने जितनौ ध्यान अपनी साधना पै दओ ओसें आधौ ध्यान हम पै दओ होतो ता आज मैं कछू बन जातो। संग के आदमिन ने बापू कौ खूब उपयोग करो। कभऊँ-कभऊँ महूँ ने बापू कौ उपयोग कर लओ। फिर बापू की ढलत भई उम्मर दिखखें मौखे उनपै तरस आउन लगो तो। आखिर बाप तौ मोरहई आय। बापू अन्त समैं लौ परलोक सुधारें की बात करत रहो। अब पता नई बापू खें सरगमिलो कि नईं। हमाऔ यौ लोक तौ चौपट हो गओ। अब हम तीनऊ भइया दिल्ली कमाखें अपनौ लोक सुधार रए हैं, स्यात सुधर जाय।



बल्लू की बाई की कहानी



मो आदमी जलम भर पूजा पाठ करत रहो। हारी-बीमारी जादा न भई ता उन्नै पूजा पाठ नई छोड़ी। मैं बरहमेस ई बात पै गरब करत रही कि मो आदमी चाल-चलन कौ साजौ है। दारू-मुरगा सें हमेसा दूर रहो। ये सबई बातें उनकी साजी हती पै भइया इत्ते भर सें तो जीवन गाड़ी नई ढिकलत। पहरबो-ओढ़बो, साजौ खाबो-पीबो येऊ तौ जीवन के अंग आय। दूसरन की बइरिन खें पहरें ओढ़े दिखखें जी तौ लौलया जातईं है। येऊ मैंने मन मारखें सटैओ। उन्नै औलादन सें मोई झोरी भर दई। यौ नई दिखो कि गिरस्ती की चादर कैसी है। सब लरकन ने एक-एक फुरफुरिया में जाड़ौ काटो। कौड़ौ ताप खें ठंड बचाई। कहत औरत आदमी की अरधांगिनी होत, यौ तो उनकी साधना बाली किताबनऊ में लिखो हौहै। हरेक चीज में मो आधौ हक हतो। तुम्हई सब जने बताऊ, हतो कि नईं? उन्नै घर की मालकी अकेले करी। मोय हांत पै कभऊँ चौन्नी नई धरी। कहत रहे बता कौन चीज की जरूरत है, मैं ल्याहों। जब बाजिब चीजें गिनाउतती ता कहत ते कि इतनी गुजास अभै नहियाँ, फिर कभऊँ दिखौ जैहै। फिर कभऊँ उनकौ कभऊँ नईं आओ। का करती मैं? जैसो बनो सो मैं करत रही। मैंने बल्लू के बापू के रुपइयन में से कछू रुपइया निकारे। चार-छैः देर पता नई चलो। जब पता चलो सो ऊ सत्तवादी ने मोई सब कहूँ भड़ाय उड़ाई। मोखें चोरनी....भड़ऊ। न जानै का-का कहो और न जानै कहाँ-कहाँ बताओ? संग बालन ने दोऊ पच्छ कभऊँ नईं निहारे। उन्हें का करनै? वे मौज में, उनकौ कौन कौन्हऊ काम आय थको रहो। फिर बापू उनके परिवार कौ हतो। उन्हें बापू की कमी काए खें दिखैहैं। चोरनी सबद कितनौ बुरओ है, मैं जानत। औरतें मोखें दिखखें कितनी खुसर-पुसर करत तीं। एक देर तौ लीला की बाई के मूँ सें मैंने साफ-साफ सुनो तो। वा बइरिन खें बता रई ती कि बापू बिचारौ गऊ या ओई की कमाई चुराखें पेरा-बरफी खा लेत। भइया मोखें ऐसौ लगत तो कि धरती फट जाय और मैं ओमें समा जाऊँ। ई आदमी ने मोई ऐसी भद्द कराई कि महीं जानत। इनके आध्यात्मिक परिवार में खूब नारी सम्मेलन होत ते मैं कभऊँ नईं गई। का करती उतै जाखें? मैं जानतती कि मोखें उतै भाला-बरछी के सिवा कछू नईं मिलहै। बइरें सब काम छोड़खे मोय ऊपर पिल परती। ई बुढ़रा ने मोई सब कहूँ सें गली छैंक दई ती। मो मन नईं करत तो का कि सबके संग में कहूँ जांव, बैठ खें बातें सुनौ। बकता का कहत उनके पिरबचन सुनौ। मैंने सोच लई ती भइया कि एखें सरग मिल है ता मो नरक कहूँ नई गओ। ई नरक सें ऊ नरक तौ थोरौ बहुत साजौ होहई। भगवान सबकी मजबूरी जानत। मोई मजबूरी जान लैहै ता ठीक है, न जान पाबै ता ओऊ भाड़ में जाबै। मूँड़ मूँड़ लैहित, टुँघरौ थोड़ी मूड़हित। मो तो रात दिन कौ रोबो-कुढ़बो हतो। लरकन सें मोखें कुल तसल्ली मिल जात्ती, मो बड़ौ लरका बल्लू साजौ है। मैं सोचत रही-धीरज धरौ, कभऊँ तो दिन बहुरहैं। कभऊँ सुख मिलहै। पै एखों दओ कलंक (चोरनी) ई जलम में मिट पाहै।यो सोचखें सरम सें गड़ जात्ती। बल्लू कौ पढ़बो दिखखे मो जी उमग जात्तो। बल्लू मो कलंक मिटा दैहै। जब ऊ अपसर बन जैहै ता मोई इज्जत बढ़ जैहै। कभऊँ-कभऊँ तै मोखें बल्लू के बापू पै दया हो आउतती कि ऊ अकेलौ कहाँ लौ काम करहै। आदमी आय मसीन थोरी है। पै ओखे उपदेस जिनमें जमीन-आसमान कौ अन्तर हतो, मोखें नई सुहाने। बल्लू कौ बापू हवा में जादा उड़त रहो। हवा संगियन ने भरी। धरती कौ सांच ओनै नई जान पाओ। हवा में उड़बौ और ककरन की धरती में चलबे में अन्तर है। ककरा गड़त ता आदमी दूनर-तीनर हो जात। बापू बरहमेस ई ककरन सें बचत रहो। मोखें कभऊँ-कभऊँ ऐसौ लगत तो कि मोई बुराई करे से ओनै अपनौ कद बढ़ा लओ। या बल्लू के बापू की भूल हती। अकेले में कद कभऊँ ऊँचौ नईं होत। वे सिरफ अपने मन खें भरमाउत रहे। मैंने निरनै कर दओ तो कि ऊ जीतो मैं हारी। हारी बइयर का कर सकत? सो थक हारखें महूँ ने मंजूरी करबो सुरू कर दई। अपने पेट में तो गाँठी लगाई जा सकत पै लरका थोरी मानत। हाट-बाजार, मेला-ठेला, मिठाई बालौ, बरफ बालौ दोरे में भौंपू बजाउत। लरका पिरान खात। एकाद होबै ता नांज-पानू सें बहटा देबै। ई भारजा के लानै तो खरौ-खरौ कागद कौ बड़ौ रूपइया चहिए। मंजूरी में काए की सरम।



यौ आध्यात्मिक परिवार बड़ौ दोगला रहो। बल्लू के बापू खें खूब बेसहूर बनाओ। आराम सें अपनौ काम निकारत रहे। मंजूरी करवाई पै ढंग सें मंजूरी के रूपइया न दए। हमाएँ का हतो येई मंजूरी तो हती। संगियन ने कारकिम कराऔ सो बल्लू के बापू दो दिना पहलूँ से लग गए और दो दिना बाद लौ लगे रहे। गाँव भर कौ सामान उठाउन गए फिर जहाँ कौ तहाँ धरन गए। रंग ऐसौ गाढ़ो धरो कि बापू भगवान कौ काम आय करत। यौ खुद बेसहूर रहो। मैंने कही सो मोई आबाज दबा दई। गुस्सा तो ऐसी लगत ती कि सबरैनन खें खूब गरयाऊँ, ऊँसई मो कटना नाव है। मैं रुक गई कि काए खें एखी बेइज्जती होबै। मो तो चोर कौ नाव हैई। मोई बुराई में सब खुस होत रहे, संग में येऊ खुसी होत रहे। एखें सरम न आई कि मैं केखी भड़ाय उड़वाउत हों। बापू के सामूँ इन्नै हमदरदी दिखाई और पीठ पाछूँ चूतिया समझो। मोई भद्द तो मोय आदमी ने करवाई नईंतर काऊ की मजाल हती कि कोऊ कछू कह जातो। मैं तो नीम कैसो घूँट पी-पीखें रही।



मैं बल्लू की आसा करें ती पै हुलकी परे नै ओनै मोई सब आसन पै पानी फेर दओ। मैं जानत ती कि यौ पढ़-लिख जैहै, ऊ लघरऊ नई पढ़ो। पइसा बरबाद करत रहो। घर सें घी गकरियाँ खबाखें इस्कूल पहुँचाउत रही उतै ऊ उचक्का लरकन के संग में डोलत रहो। उनकी का है, पढ़ गए ता पढ़ गए, नईंतर बक्खर तो डूंड पै डरो। पै ई नाटपरे खें सरम न आई कि हमाए पास का है। बाप ने कभऊ मुरगा-दारू नईं करो, एनै राच्छसपन रोप दओ। अपनी कमी में केखें रोती सो जलम भर घुटत रही। बाप ने जलम भर रुबाओ अब लरका करेजौ जारत। अब तो मैंने बाप-बेटा खें कहबो छोड़ दओ। ये राई-राई लरका और पल जावै सो जानी कि मो उद्धार हो गओ। नक्टन खें सरम नहियाँ ता मैं का करौं। बड़े भगत बनत हैं। ऊपर जाखें बताहैं कि मैंने लाखन माला सटका दईं पै लरकन खें धेलऊ नईं छोड़ो। का करनै? मैं सैकें खून जराउत हों। लोहू तो वे मो पहलईं पी गए, अब हड़रा बचे हैं सो ओऊ बार आवैं, इनकौ करेजौ जुड़ा जाय। वा ऐसई आँय-बाँय बकत-बकत दुनिया सें चली गई।



बल्लू की आँखन से अँसुआ टपक गए-बाई के भाग में सुख नईं बदो तो। घुटत-घुटत दोऊ आदमी समै से पहलूँ चले गए। आज हमाई कमाई दिखखें बाई और बापू खूब खुस होते।बल्लू ने अपने अँसुआ पौंछे।



-‘का दिख रए हौ? बापू की फोटू। बाप मताई के मरे के बाद लरकन खें उनके दए सुख याद आउत।बखरी की दिवार पोत रही बल्लू की लुगाई ने ओखें टोको। बल्लू के मूँ सें आह सी निकरी-हाँ तैंने सही कही लच्छमी।



पाठको मैंने बल्लू, बल्लू के बापू और ओखी बाई की कहानी पूरी ईमानदारी से लिखी है। उनके मैंने सबरे साजे बुरए पच्छ आप लोगन के सामूँ धर दए। ई तीनउअन में सबसें जादा पच्छ कैखों बजनदार है। निरनै आपई खें करनै। या बात मैं तुम सब पंचन की चौपाल में पहुँचा रहो हों-जो लागै पंचन सब नीका।



------------------------------------------------------


प्रबन्ध सम्पादक-स्पंदन

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

  © Free Blogger Templates Photoblog III by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP