विरासत -- बुन्देली कहानी
अक्टूबर 10-फरवरी 11 == बुन्देलखण्ड विशेष ---- वर्ष-5 ---- अंक-3 |
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बुन्देली कहानी--डॉ0 रामनारायण शर्मा विरासत |
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‘कैसी तबियत है कमल?’ रामनाथ की आवाज सुनतई कमल ने आँखें खोलकें कई-‘सब ठीकई है दाऊ। तबियत कौ का कानें। पल में पांसा और पल में रत्ती होत। अब तौ लगत कै जौ आखिरी बखत होय।’ रामनाथ दाऊ ने कमल कों समझाऔ-‘कैसी अशुभ बातें करत। अरे जुर है। कछू दिना में चलो जेहै। वैसें वैद्य ने का कई?’ कमल कों कमजोरी के कारन बोलबे में परेशानी हो रईती थोड़ो रुक कें ऊनें बताओ-‘दाऊ! हम गरीबन के लानें अशुभ तौई दुनियाँ में जीवन जीबौ आय। वैद्य की दबाई काम नईं कर रई।’ थोड़ो रुक कें कमल बोलौ-‘दबाई तौ रोग पै असरकारी होत। हमायो रोग तौ गरीबी आय दाऊ। ई कौ इलाज तौ देही के संग जेहै।’ दाऊ ने कमल कों ढाँढस बधाओं और कई-‘कमल तुम तौ समझदार हौ। भगवान कौ नाम लेऔ सब ठीक हो जैहै।’ कमल ने उखड़ती सांस रोकत कई-‘दाऊ अपुन ठीक कत। लेकिन जी भगवान ने हमें गरीबी-लालची में पैदा करौ। सौ भला उये पुकारबे कौ अब का काम। भगवान तौ अमीरन कौ काम साधत।’ कमल की बातें सुन रई पास में बैठी ऊकी लुगाई रो पड़ी। बाकी रोबै की आवाज सुन कमल बोलौ-‘रामू की अम्मा अब रोबै-धोबै कौ का काम। बैसे रोबै के सिवाय मैं तोय जिंदगी भर और कछू तौ दे नईं पाऔ। अब बच्चन की जिम्मेदारी लेबे को तैयार हो जाओ। हमनें तौ अपनी जिंदगानी जैसें तैसें काट दई। अब इन बच्चों की जिंदगी को तुमें सँबारनें।’ कमल ने पास खड़े रामू को समझाओ-‘बेटा गरीब के लरका कौ बचपन नई होत और जबान होत बड़ौ हो जात। तुमें अब अपनी अम्मा और बहिन की जिम्मेदारी मैं सौंपत। जैसें बचपन में हमाये बाप ने हमें घर की जिम्मेदारी सौंपी हती। आज जोई विरासत अब मैं तुमें सुपुर्द करत।’
रामू अपने पिता की बातें सुन फफक-फफक कर रोबै लगौ। तब कमल ने समझाउत ऊसें कई-‘रामू मैं तो तेरे काजें कछू नईं कर सको। तुम वचन दो कै मेरे बाद तुम अपनी संतान कों मेरी दई विरासत नई बांटौ। जी से हमाये पुरखन कों शांति मिले।’ कमल की बातें सुन ऊकी पत्नी रामकली नें ऊकौ हाथ अपने हाथ में लेकें कई-‘कैसीं बाते करत रामू के बापू। अकेली सूनी राह पै हमें छोड़ कें तुम नई जा सकत। रामू तुमाई अमानत है। जौ तुमाये अरमान अवस पूरौ करे।’ कमल शायद जैई बचन सुनवै कों अपनी बची हुई सांसों कों खो देबै सें पैलें सुनबों चाउत तों। ईके बाद एक हिचकी के साथ ऊकी जीवन जोत बुझ गई।
कमल की मौत पै पुरा-परौसी दाऊ सभी जनें आये। उननें रामू को समझाओ और अंतिम यात्रा पै ले चले। देह के दाह संस्कार सें कमल के दुःख दूर भये। पै रामू की चिन्ताएँ ऊके बाप की चिता जलबे के बाद सें और बढ़ गईं। रामू ने पिता की चिता को परिक्रमा दे प्रणाम कर अपने शरीर पै लपटी धोती उतार मरघट कों सोंप अपनौ तन अंगोछा सें ढाक घर लौट आओ तो। घर पर नहा-धो कें ऊनें पिता की धोती अपने नंगे बदन पर ओढ़ लई। ईके के साथ मानों ऊनें पिता की विरासत में दी गई घर की सारी जिम्मेदारियां ओढ़ ली हों।
रात में रामू अपने बाबू की धोती ओढ़े महसूस कर रयो तो कै ऊकौ खुरदापन उये जीवन की असलियत कों मानों समझा गईं। कल के बपचन को आज में बदलबे को समझ रयोतों। सोच में डूबौ रामू को पौर में रखे दिया में अपने पिता कौ चेहरा दिखाई दयो जो कत हतो-रामू दिये की जोत को देख जो अपने उजाले से अंधियारे कों दूर कर हमें रास्ता दिखाउत। ई में जौ तेल बाती है बोई जिन्दगी है। बेटा! तुमाये भीतर सोई ऐसौ विसवास और साहस है तुम इसे अपनी मेहनत से उजागर करना ईसे हमें मुक्ति मिले। मैंने अपनी विरासत में जो गरीबी, अशिच्छा दई तू अपनी संतान को न देना। मैं तेरे साथ रैहों। रामू ने संकल्प करौ कै बो अपने बापू के सपनन को अवसईं पूरौ करै।
गर्मी के दिन फिर लौटे। कमल की बरसी कर रामू अपनी अम्मा के साथ पौर में बैठो हतो कै ऊकी अम्मा ने कई-‘बेटा अब तेरे पिता की बरसी सोई हो गई अब तो बहू की विदा करा ल्याओ। जीसें घर कौ सूनोपन मिटै। मैं अब कितने दिन की। कब चल बसूँ। मेरे सामें तोरौ घर बसौ देख कें चैन से मर सकूँ।’ रामू ने अपनी अम्मा की बातों को सुन कई-‘अच्छा अम्मा! जो तू कहेगी बोई हुइये। अभी तुझे भौत दिनन तक जीनें। अभी मरने कौ नाँव न ले। असाढ़ से पैलें तेरी इच्छा पूरी कर दैहों।’
रामू की बहू के आबे पै ऊकी अम्मा ने अपनौ रैवे बारौ कमरा छोड़ खुदई दालान में आ गई। एक दिन ऊकी सास ने ऐसेई ऊकें ई घर में आबे पै जौई कमरा अपनी बहू कों दयो तो। जई रीति सालन से चली आ रई।
दिन बीतै! रामू अपनी पत्नी के संग कड़ी मेहनत-मसकक्त करै। ऊके पसीने से खेत की माटी सोना उगलनें लगी। रामू की अम्मा उसके काम से खुश हो अपने पति को याद कर आसमान की ओर देख कें मन में बोली-रामू के बापू तुमाईं किरपा से बेटा ने तुमाओं काम खूब उठा लओ। अब तौ तुम खुश हुइयो। बहू ने लरका जायो। जो सब तुमायें पुन्न-परताप कौ फल आय। रामकली की आँखें डबा-डबा आईं। ऊने अपने आँचल के छोर सें पोंछ सुख की साँस लई। रामू ने अपनी अम्मा के मुँह पै खुशी देख कई-‘अम्मा हमाये दिन बाबू और तेरे आशीर्वाद से लौट आये। अब हम अपनी बहिन और बच्चे कों पढ़ा-लिखा के उनें योग्य बनाबें। आशीर्वाद दे।’ रामकली ने रामू के सिर पै हाथ फेर कई-‘बेटा! मेरौ आशीर्वाद तोरे संग बरहमेश है।’
रामू ने बहिन को पढ़ा-लिखा के स्वास्थ सेविका बना शादी कर दी। अपने बेटा महीपाल को ऊँची से ऊँची शिक्षा दैके अधिकारी बनाओ। लेकिन अफसोस उसकी अम्मा यह सब देखबै से पैलें चल बसी। ऊके कहे वचन रामू सौचन लगौ-रामू छोटी की पढ़ाई पै खर्चा से अच्छौ है कै ई की शादी कर दे। अम्मा की बात सुनकें ऊनें समझायो-देख अम्मा कछू पावै की खातिर कछू खोबे तौ परतई। हम गरीबी की बात कैकें ऐसेई जिन्दगी नई जी सकत। गरीबी रोग जैसी आय। ईकों दूर करबें को इलाज कड़ी मेंनत और पढ़ाई है। मेहनत से हमाई गरीबी कछू हद तक दूर भई, उन्नति की राह हमाये सामें दिखाई दे रई। हमाये बच्चे पढ़-लिखकें समाज में इज्जत से रये और हमाई दशा सुधर जाये। पीढ़ियन की गरीबी कौ दर्द मिट जाये। अम्मा मान गई ती। आज ऊकौ नाती महीपाल ‘एम0 पाल0’ कहाउत। जब पैले पैले वह घर आऔ तो तौं ऊकी अम्मा लाड़कुँवर ने ऊकी आरती उतारी ती। घर मुहल्ला वालों से भर गयो तो। सबई एम0पाल0 को देख बड़ाई करते-अरे कमल और रामकली होती तौ देख कैं कितनी खुश होती। रामू ने अपने बाप-मताई कौ मान बढ़ा दयो और गाँव कौ नाँव उजागर करौ।
रामू ने सबके विचार सुन कई-कक्का हो जौ सब अपुन कौ पुन्न परताप आय और अपनी धरती कौ जस कै महीपात कछू बनो। ईसें गाँव समाज की उन्नति में कछू कर सके। धीरे-धीरें जब भीड़ छट गयी तौ महीपाल नें अपनी अम्मा को एक नई साड़ी भेंट करी ओर पाँव छुये। रामू को धोती देके गरे से लिपट गयौ। दोनों खुशी भये। रामू बोलो-‘महीपाल अपने बब्बा-दादी को परनाम करौ जी की वजह से तुम कछू बन सके। मुझे तो मेरे बापू ने मरते समय अपनी धोती दे कईती, रामू तुमें हम जोंन गरीबी की विरासत छोड़ कैं जा रये तुम अपने बेटों को मत देना। वचन मैंने उनें दयो तो। सो आज पूरौ भयो। मैं खुश हूँ कि पीढ़ियों से चली आ रई विरासत मिट गई। ई सें वंश को मुक्ति मिली।
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‘रामायण’
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झाँसी (उ0प्र0) 284001