बुन्देली के प्रति जागरूकता आवश्यक -- बात दिल की -- सम्पादकीय
अक्टूबर 10-फरवरी 11 == बुन्देलखण्ड विशेष ---- वर्ष-5 ---- अंक-3 |
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बात दिल की बुन्देली के प्रति जागरूकता आवश्यक |
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किसी भी भाषा और बोली की अपनी विशेष सत्ता-महत्ता होती है। सांस्कृतिक दृष्टि से भी इनका अपना महत्व है। विगत कुछ वर्षों में देखने के मिला है तथा विभिन्न शोधों से ज्ञात हुआ है कि विश्व की अधिकांश भाषाओं-बोलियों के अस्तित्व पर खतरा आन पड़ा है। बहुत सी भाषाएँ और बोलियाँ या तो लुप्त हो चुकी हैं अथवा लुप्तप्राय हो चुकी हैं। ऐसी विभीषिकापूर्ण स्थिति में कई बार मन में बुन्देली भाषा के अस्तित्व को लेकर भी सवाल पैदा होते हैं।
समूचे बुन्देलखण्ड में वर्तमान में एक प्रकार की असामाजिकता का वातावरण निर्मित होता दिखाई दे रहा है। इस असामाजिकता के वातावरण को दूर करे का तो कोई प्रयास भी नहीं हो रहा है वरन् सभी इसको अपने-अपने चश्मे से देखकर परिभाषित करने में लगे हैं। किसी को इसमें राजनीतिक षडयन्त्र दिखाई दे रहा है तो कोई इसमें इस क्षेत्र की संस्कृति-सभ्यता को समाप्त करने की साजिश मान रहा है। कारण कोई भी हों पर यह मूल नहीं है। देखा जाये तो बुन्देलखण्ड क्षेत्र में व्याप्त असामाजिकता के पीछे इस क्षेत्र के प्रति लोगों के मन में पैदा होने वाला उपेक्षा का भाव है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र से इतर क्षेत्र के लोगों में तो सदैव से इस क्षेत्र के प्रति एक विभेद जैसी मानसिकता बनी रही किन्तु इधर हाल के कुछ वर्षों में देखने में आया है कि बुन्देलखण्ड के निवासियों में भी अपने क्षेत्र के प्रति वितृष्णा का भाव पैदा होने लगा है। यह स्थिति सोचनीय तो है ही साथ ही खतरनाक भी है।
अपने क्षेत्र के प्रति अथवा किसी भी क्षेत्र के प्रति वितृष्णा का भाव उस समूचे क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत के प्रति भी वितृष्णा का भाव पैदा करता है, उसके प्रति मोह भंग जैसी स्थिति को पैदा करता है। बुन्देलखण्ड के प्रति उपजते नकारात्मक भावों के कारण यहाँ की संस्कृति, यहाँ की भाषा-बोली, लोकजीवन के प्रति भी दुराभाव जैसी स्थिति बन गई है। इस विषमता का प्रभाव मुख्य रूप से बुन्देली भाषा पर, बोली पर होता दिखाई दे रहा है। ऐसा नहीं है कि इस क्षेत्र में अपनी संस्कृति के प्रति सकारात्मक सोच रखने वालों की संख्या में कमी आ गई हो; ऐसा भी नहीं है कि इस क्षेत्र में साहित्यिक गतिविधियों में शिथिलता आ गई हो; ऐसा भी नहीं है कि इस क्षेत्र में बुन्देली के प्रति सक्रियता का भाव समाप्त होता दिख रहा हो किन्तु इसके बाद भी एक प्रकार का आभास होता है जो दर्शाता है कि कहीं न कहीं बुन्देली का अस्तित्व संकट में है।
बुन्देलखण्ड के ग्रामीण एवं सुदूर अंचलों के अतिरिक्त बुन्देली बोलने वालों की संख्या में लगातार गिरावट आती जा रही है। लोकजीवन के माध्यम से बुन्देली को जीवित रखने के जो भी प्रयास आमजन द्वारा किये जा रहे थे वे भी लगातर कम होते दिख रहे हैं। साहित्य के क्षेत्र में सक्रियता नित नये आयाम स्थापित कर रही है इसके बाद भी बुन्देली के प्रति खामोशी का वातावरण निर्मित होता दिखाई दे रहा है। अधिकांश रचनाकार अपनी रचनाओं में बुन्देलखण्ड के गौरव और आन-बान-शान को दर्शा रहे हैं पर उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम खड़ी बोली बना हुआ है। बुन्देली भाषा में अधिकांशतः काव्य-रचनाओं का प्रस्तुतिकरण हो रहा है और इनमें भी अधिकांशतः मंचीय काव्य-रचनाओं के रूप में प्रदर्शित हो रही हैं। इस तरह से बुन्देली भाषा में साहित्य-रचनाधर्मिता तो दिखाई दे रही है किन्तु इससे बुन्देली को विशेष बढ़ावा मिलता नहीं दिखाई दे रहा है।
बुन्देली के प्रति यहाँ के लोगों के मोह भंग का एक महत्वपूर्ण कारण इस क्षेत्र की युवा पीढ़ी का बुन्देली के वैभव से, बुन्देलखण्ड के वैभव से लगातार दूरी बनाये रखना भी है। बुन्देलखण्ड के शहरी क्षेत्रों में तो बुन्देली भाषा के प्रति एक प्रकार का जाहिलाना, गँवारू, देहाती, उजड्ड भाषा होने जैसा भाव दर्शाया जाता है। आपसी वार्तालाप में भी वर्तमान में यहाँ बुन्देली बोलने में संकोच चेहरे पर प्रदर्शित होने लगा है। इस तरह का संकोच, वितृष्णा का भाव बुन्देली भाषा को एक दिन लुप्त भाषाओं की श्रेणी में खड़ा कर देगा।
बुन्देली के विकास के लिए एकाएक किसी राष्ट्रीय नेतृत्व की, किसी राष्ट्रीय नायक की आवश्यकता नहीं है। हम सभी को आपसी प्रयासों से अपनी भाषा को बचाये रखने का संकल्प लेना होगा। यह एक सार्वभौम सत्य है कि हमारी अपनी भाषा को बचाने के लिए कोई अवतार नहीं आयेगा; इस संकट को हम लोगों ने ही पैदा किया है और इस संकट का हल भी हम सभी को निकालना होगा। अपनी भाषा के प्रति संकोच का, वितृष्णा का भाव हमें किसी न किसी दिन अपनी जड़ों से बहुत दूर कर देगा। हम सभी का, साहित्यकारों का, अध्यापकों का, मीडिया का, समाज में प्रतिष्ठितजनों का, अभिभावकों का, युवा पीढ़ी का कर्तव्य है कि हम अपने क्षेत्र का वैभव जानें, अपनी भाषा का महत्व समझें और उसके विकास के लिए अपना कुछ योगदान तो अवश्य दें। हमारा आंशिक योगदान भी समवेत रूप में एक महासागर की भाँति होगा जो बुन्देलखण्ड क्षेत्र के वैभव को वापस लायेगा, बुन्देली भाषा को भी वैश्विक स्तर पर स्थापित करवायेगा। बुन्देलखण्ड के, बुन्देली के आन-बान-शान हेतु आरम्भ होने वाले महासमर के महायज्ञ में एक आहुति हमें अपनी ओर से भी डालनी होगी।
स्पंदन परिवार की ओर से प्रतिवर्ष तीसरे अंक को बुन्देलखण्ड विशेष के रूप में प्रकाशित करना इसी ओर उठाया गया एक कदम है। स्पंदन की पाँच वर्ष की यात्रा का यह एक और पड़ाव है; मंजिल अभी बहुत दूर है जिसे आप सभी के सहयोग से प्राप्त करने की अभिलाषा है। आप सभी के सुझावों, प्रतिक्रियाओं की अपेक्षा रहेगी-