कविता -- मालती शर्मा -- आत्म-निर्णय के क्षणों में
जुलाई-अक्टूबर 10 ---------- वर्ष-5 अंक-2 -------------------------------------------------------- कविता-मालती शर्मा आत्म-निर्णय के क्षणों में |
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तुम्हारा यह रास्ता
बन्द नहीं हुआ है
एक बड़ी भारी आँधी आने से
सदियों से खड़े पेड़ गिरने से
अवरुद्ध हो गया है।
आत्म-निर्णय के इन क्षणों में
तुम चींटी, बंदर, चूहा, कछुआ, कंगारू
कुछ भी हो सकते हो
या फिर शामिल होने को
जाने वाला कोई भी काफिला चुन सकते हो
या...प्रतीक्षा कर सकते हो
किसी क्रेन केे आने की
पर यह भी सच बात है कि
इन बड़े दरख्तों के गिरने से
राजपथ जरूर रुक गया है
पर अब साफ दिखने लगे हैं
उनकी सघनता में ओझल रहे
दूर तक फैले धरती-आकाश
और खुली-खुली दिशायें
आओ हम, ऐसा करें......
इस कीचड़ में ठहरे पानी में
कोई ईट या पत्थर का टुकड़ा डालकर
क्यों न कोई पगडंडी बनायें
राजपथ के इधर उधर कदम रखकर
और चल पड़े उन अनजानी दिशाओं की ओर
जिधर पंखी पखेरू
आँधी में यहाँ पेड़ गिर जाने पर
उड़कर गये हैं
अपने हाल के जन्मे बच्चे लेकर।
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