कविता -- सुकीर्ति भटनागर -- दिन कहता है


जुलाई-अक्टूबर 10 ---------- वर्ष-5 अंक-2
--------------------------------------------------------
कविता-सुकीर्ति भटनागर
दिन कहता है


दिन कहता है चलो सदा तुम,
जैसे सूरज चलता है।
दिन कहता है हँसो सदा तुम,
फूल-फूल ज्यों हँसता है।।
बच्चो तुम जीवन का हो सुख,
तुम जीवन की आशा हो।
तुम आगत के सच्चे सपने,
माँ भारत की भाषा हो।।
दिन कहता है बढ़ो सदा तुम,
जैसे गौरव बढ़ता है।
दिन कहता है चढ़ो सदा तुम,
शिखर-शिखर पग चढ़ता है।।
हर निराश संध्या से कहना,
रात नहीं रुक पाएगी।
आशाओं के सुन्दर-सुन्दर,
फूल सुबह चुन लाएगी।।
दिन कहता है रुको नहीं तुम,
झर-झर झरना बहता है।
दिन कहता है झुको नहीं तुम,
गगन छत्र बन रहता है।।

==================================
432, अरबन एस्टेट फेज-1
पटियाला-147002

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

  © Free Blogger Templates Photoblog III by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP