कविता -- राजेन्द्र ग्रोबर == भूली-भूली नज़में, भूली-भूली दास्तां


जुलाई-अक्टूबर 10 ---------- वर्ष-5 अंक-2
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कविता-राजेन्द्र ग्रोबर
भूली-भूली नज़में, भूली-भूली दास्तां


भूली-भूली नज़में, भूली-भूली दास्तां
गीत संगीत डांवाडोल हुआ
अक्षरों का शब्दों से न मेल हुआ।
मार्ग लेखन का टेढ़ा मेढ़ा
उधर पंगडडियों ने डाला घेरा,
रास्ते का वास्ता घनेरा
बारम्बार लगाता फेरा।
हम क्या समझे, वे क्या समझे,
समझाने की जरूरत भी कैसे,
जब दिल के अरमां भटक गये जीवन डगर में
फिर क्या पड़ा अगर मगर में।
यौवन-जर का मेल टेढ़ा
क्या रात क्या सबेरा।
भूली-भूली नज़में, भूली-भूली दास्तां।

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