बुन्देली कविता -- पं0 हरगोविन्द तिवारी ‘कविहृदय’ -- बुन्देलखण्ड
जुलाई-अक्टूबर 10 ---------- वर्ष-5 अंक-2 -------------------------------------------------------- बुन्देली कविता-पं0 हरगोविन्द तिवारी ‘कविहृदय’ बुन्देलखण्ड |
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यों चमके भू-मण्डल पर बुन्देलखण्ड पावन प्यारा।
जैसे चमके तारा-मण्डल बीच गगन पर धु्रव तारा।।
भारत-हृदय-पटल पर शोभित, यह नयनाभिराम न्यारा।
जहँ विन्ध्याचल पर्वत शोभित, होता है अतिशय प्यारा।।
निर्मल शुचि सरिताओं ने जल-सिंचन कर इसे सँवारा।
यमुना, चम्बल, टौंस, नर्मदा, वेत्रवती धसान-धारा।।
वन उपवन की शोभा प्यारी, फैली चहुँ दिशि हरियाली।
जीव-जन्तु, पशु-पक्षी विचरें, चहँु दिशि छाई खुशयाली।।
ये धरती चीतल, शूकर, साँभर, भालू, सिंहों वाली।
कन्द मूल, फल जड़ी-बूटियाँ, उगें यहीं औषधि वाली।।
हरी पौध अरु हरे बगीचे, लाल खेलते मैदानों में।
लहरातीं फसलें खेतों में, दाने-मोती खलिहानों में।।
झरना, झील, ताल, नद नाले, इस भू पै शोभित न्यारे।
महुआ, तेंदु, बेर, खैर, सागौन, आँवले तरु अति प्यारे।।
यत्र-तत्र सर्वत्र छिपी है, खनिज सम्पदायंे बहु सारी।
पन्ना, माणिक, हीरा, मोती, का भण्डार भरा भारी।।
सोने चाँदी, ताँबे, लोहे का, है अतुलित भण्डार गड़ा।
गौरा, अभ्रक, संगमरमर का, यहाँ वृहद भण्डार पड़ा।।
मिट्टी, चूना, बालू, पत्थर और मुरम है उपयोगी।
दृढ़ चट्टानों की बहुतायत, ऐसी कहीं नहीं होगी।।
लोग यहाँ के गौंड़ औ खँगवाल, वीर जुझारू रहे बड़े।
जैजाक भुक्ति, जुझौति, दशार्ण, तभी पहले ये नाम पड़े।।
रहन-सहन, सभ्यता-संस्कृति, तजें न निज जीवन-शैली।
धर्म-कर्म-परिपाटी रसमय, दुनिया में मनहर बुन्देली।।
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तिवारी टाइपिंग इंस्टीट्यूट,
इन्दिरा प्रियदर्शिनी वार्ड,
शाहगढ़, सागर-म0प्र0 पिन-470339