कविता -- राजेन्द्र ग्रोबर -- मन समय के साथ अलग न हो पाता
जुलाई-अक्टूबर 10 ---------- वर्ष-5 अंक-2 -------------------------------------------------------- कविता-राजेन्द्र ग्रोबर मन समय के साथ अलग न हो पाता |
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दिन भर भटकता रहता मन,
क्या बात करें
क्या न करें
रात्रि के अंधेरे में भी, न मिला आराम,
थक गया मन व तन
स्वप्न में भी,
रात की भटकन,
दिवस की धड़कन,
जग किस वस्तु से
किस भाव से, विचार से,
मिश्रित है
या अलग है
जब तक साँस है
तब तक आस है,
समय को कौन देख सकता,
केवल आभास करता
मन समय के साथ
अलग न हो पाता।
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771-हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी,
अम्बाला छावनी (हरियाणा) 133001