कविता -- नरेन्द्र कुमार -- मीठा एहसास


जुलाई-अक्टूबर 10 ---------- वर्ष-5 अंक-2
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कविता-नरेन्द्र कुमार
मीठा एहसास


एक किलोमीटर दूर
रहता है
मेरी बूढ़ी हड्डियों का
सहारा
सुनना चाहता था मैं
उसकी दस्तक जो
नहीं सुनाई दी मुझे आज तक
मैं ही चला जाता हूँ
गांधी को सुन
कसरतों की रानी के पास
सप्ताह में एक बार
पैदल
भूल जाता है उसे लेकर
चढ़ा गर्द-ओ-गुबार,
तनाव
बढ़ती उम्र की चटकती हड्डियों का
कोलाहल
यह मन पागल
मानते हुए निकल पड़ता है
ले विचार
हर वस्तु, प्रकरण का
सिरा होता है
ज्ञात या अज्ञात
एक आकृति के साथ शायद
टैगोर यह सब जानते थे
उम्रदराजों का बच्चों के साथ
सान्निध्य
आकर्षक फूलों की महक के साथ
नाना रंगों का मिलन
तनाव हर लेता है
परन्तु
वापस मुड़ते ही
ख़्याल आता है
कल जब यह बच्चा
बड़ा हो जायेगा
मेरे बच्चों को खूब रुलायेगा
सोचता बहुत हूँ
पर कुछ कर नहीं सकता
पा लेता हूँ
यू ही दो पलों का
मीठा एहसास।

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सम्पादक-दिवान
सी0 004 उत्कर्ष अनुराधा,
सिविल लाईन्स, नागपुर-440001

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

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