कविता -- डॉ0 वेद ‘व्यथित’ -- यक्ष प्रश्न


जुलाई-अक्टूबर 10 ---------- वर्ष-5 अंक-2
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कविता-डॉ0 वेद ‘व्यथित’
यक्ष प्रश्न


तुम्हारे मन में
असामयिक मेघों की भाँति
उमड़ते-घुमड़ते प्रश्नों का उत्तर
इतना सरल नहीं था
क्योंकि वे अर्जुन का विषाद नहीं थे।
कुन्ती का पुत्र मोह भी
कहाँ था उनमें
गांधारी का पुत्र सत्य का
विजय का आशीर्वाद
नहीं थे वे
क्योंकि वे तो
प्रतिज्ञाओं की शंखला में आबद्ध
कृत्रिम सत्यान्वेषण को
ललकारने की
स्वीकृति भर चाहते थे
ताकि दुःख की बदली से भरकर
निरभ्र हो जाएँ
और खून ये आँसुओं की
धारा से प्लावित कर दे
उन उत्तरों को
जो बोझ की भाँति
धर दिये हैं
जबरदस्ती
दहकते कलेजे पर।।

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अनुकम्पा
1577 सैक्टर-3, फरीदाबाद-121004

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

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