ग़ज़ल-डॉ0 नौशाब ‘सुहैल’ दतियावी


जुलाई-अक्टूबर 10 ---------- वर्ष-5 अंक-2
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ग़ज़ल-डॉ0 नौशाब ‘सुहैल’ दतियावी


(1)

मेरे होंठों पर प्यास रहने दे।
दिल में मिलने की आस रहने दे।।
क्या करोगे जानकर हाले-दिल।
मुझे तो अब उदास रहने दे।।
आना होगा तो लौटकर आयेगा।
उसके आने की आस रहने दे।।
हमें प्यार करना न आयेगा।
ये हुनर अपने पास रहने दे।।
बहुत पी चुका हूँ मैं साकी।
अब तो खाली गिलास रहने दे।।
‘सुहैल’ यह इल्मदां की महफिल है।
खुद को अदना शनास रहने दे।।

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(2)

मैं तन्हा मेरा दिल तन्हा।
कौन है मेरे मुकाबिल तन्हा।।
लहरें भी हैं चुप-चुप सी।
सागर चुप और साहिल तन्हा।।
तू ही नहीं बज़्म में शामिल।
बिन तेरे यह महफिल तन्हा।।
देखने वाले सब देख रहे थे।
राह में था एक घायल तन्हा।।
खून से लथपथ लाश पड़ी थी।
पास खड़ा था कातिल तन्हा।।
राहे-व़फा में चलना पड़ेगा।
‘सुहैल’ तुमको केवल तन्हा।।

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61/13 तलैया मुहल्ला,
दतिया (म0प्र0)-475661

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