कविता -- डॉ0 रीता हजेला ‘आराधना’ -- काम पर जाती स्त्री, चालक सीट पर स्त्री


जुलाई-अक्टूबर 10 ---------- वर्ष-5 अंक-2
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कविता-डॉ0 रीता हजेला ‘आराधना’
काम पर जाती स्त्री


काम पर जाती स्त्री
निपटा चुकी होती है काम
काम पर जाने से पहले
राजधानी को मात करती
उसकी रफ्तार
हवाई जहाज के दक्ष पायलट सा
उड़ाती हाथ-पाँव
कलाबाजियाँ सा करता जिस्म
नजर टिकाए घड़ी पर
न क्षण भर इधर न उधर
कम्प्यूटर के स्क्रीन सेवर सा
पल पल बदलता जाता उसका रंग
कारपोरेट जगत की डेड लाइन्स
वह रोज सुबह
पूरी करती है
अपनी सम्पूर्ण उर्जा के
प्रदर्शन के साथ
नींद न पूरी होने की मजबूरी ओढ़े
खुलती है उसकी आँख
और सेकेंडों में
शून्य से सौ पर आता है उसका स्पीडोमीटर
तब जब लोगबाग
अलसाई सलवटों के बीच
बैड टी के घूँटों से
आँखें खोलने का कर रहे होते हैं प्रयास
वह दौड़ने लगती है
हर स्टेशन पर रुकती
ई एम यू गाड़ी की तरह
हालांकि
उसे कभी सम्बोधित नहीं किया गया
प्रबन्धन गुरु की तरह
बुलाया नहीं गया भाषण के लिए
प्रशिक्षण केन्द्रों में
विशेषज्ञ की तरह
वह सँभाल लेती है सारी व्यवस्था
स्वचालित रॉकेट की तरह
जहाँ-तहाँ से सिर उठा लेते हैं
तुरन्त समाधान माँगते
आकस्मिक प्रश्न
मगर पाया नहीं गया उसे कभी
चीखते चिल्लाते
कड़क बास की तरह
कायम रहता है उसका सन्तुलन
रस्सी पर नट की तरह
फोन की घंटी भी टपक पड़ती है
बीच में
अनपेक्षित मेहमान की तरह
धैर्य का परीक्षा पत्र बन
लेकिन वह देती है उत्तर
गया में वटवृक्ष के नीचे स्थापित
बुद्ध की तरह
उसके अंग अंग को फड़कना होता है
परमाणु ऊर्जा के अक्षय स्रोत की तरह
काम पर जाती स्त्री को
चाहिए होती है ऊर्जा
काम के लिए
और काम पर जाने से पहले
काम के लिए
काम से लौट कर
फिर काम के लिए
हवा भरे जाते गुब्बारे की तरह

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चालक सीट पर स्त्री


एक अजीब सी निगाह से
देखी जाती है
चालक सीट पर बैठी स्त्री
जिसका बगल से गुजर
आगे निकल जाना
किसी को नहीं होता बर्दाश्त
जैसे देखी जा रही हो
कमीज की सफेदी
उसकी रफ्तार
मेरी रफ्तार से तेज कैसे
हटा लिया है उसने अपना हाथ
पुरुष के कान्धे से
जरूरत नहीं पीठ से सटकर बैठने
स्पर्श सुख देने की
हथेलियाँ कस कर थामे हैं
स्कूटर का हैन्डिल
गुजरते जा रहे हैं बगल से
वाहन चालक पुरुष
चली जा रही है स्त्री
सड़क पर निर्विकार
कोई भाग दौड़ नहीं
खुदा न खास्ता
कुछ मद्धिम हुआ यातायात
उसके पास
उसने सफाई से बढ़ा दिया स्कूटर आगे
पीछे छूट गई पुरुषों की कतार
स्कूटर मोटर साइकिल सब
बस बाई चान्स
मगर तन गई भृकुटियाँ
आ गया उबाल
सारे एक्सलेरेटरों पर बढ़ गया दबाव
हाय एक स्त्री गुजर गई
उन्हें ओवरटेक कर
ऐसी तौहीन
यकायक सड़क पर मच गया
एक अघोषित कोहराम
हर वह शख्स जो कहीं भी था
उसके आस पास
दौड़ पड़ा है बेचैन होकर
अब वो तब तक नहीं लेगा साँस
जब तक किसी तरह
स्त्री को नहीं देगा पछाड़
जब तक निकलते रहे
उनकी बगल से
अनगिनत पुरुष चालक
स्कूटर मोटरसाइकिल मोटरकार सवार
कोई परेशानी नहीं हुई
स्त्री के गुजरते ही
आ गया भूचाल
सड़क पर चलती चालक स्त्री को
मालूम होना चाहिए
ट्रैफिक का ये अघोषित नियम
रेड सिग्नल के अलावा भी राह में हैं
रेड सिग्नल।

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

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