कविता -- डॉ0 अंजली दीवान -- प्रकृति के मोती


जुलाई-अक्टूबर 10 ---------- वर्ष-5 अंक-2
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कविता-डॉ0 अंजली दीवान
प्रकृति के मोती


खामोश नजारे
कुछ न कहते हुए
कितना कुछ कह रहे हैं।
एक अजीब सी तनहाई
छाई है चारो ओर।
दूर किसी ने पुकारा
गूँज उठे पहाड़।
झरनों का जल
कल-कल करता हुआ
सुना रहा है कहानियाँ।
बादल मूक बस
तैर रहे हैं आकाश में
धरती की ओर
झाँकते हुए।
रेत पर पड़ी सीपियाँ
पानी की लहरों से
इधर-उधर बिखरती हुईं।
दूर इक किश्ती जाती
दिखाई देती है।
सब कुछ अपने आप
चल रहा है।
सूरज उगता है
रात ढलती है।
चांद पूर्णिमा में
दीखता है सफेद
गोले जैसा।
तारे टिमटिमाते हैं
कुछ बड़े, कुछ छोटे।
इक माला में
पिरोये सब मोती हैं
जो दूर होते हुए भी हैं
साथ-साथ
धागे के एक छोर से
दूसरे छोर तक।


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सेंट बीड्स कॉलेज,
शिमला-हि0प्र0

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

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