कविता -- डॉ0 सुनील गुप्ता ‘तन्हा’ -- नारी-महिमा


जुलाई-अक्टूबर 10 ---------- वर्ष-5 अंक-2
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कविता-डॉ0 सुनील गुप्ता ‘तन्हा’
नारी-महिमा


हे नारी,
तेरे पावन चरणों को नमन्
तूने काँटों से बिंधकर भी
सींचा है जीवन का उपवन।
हे धैर्य धारणी
पुरुषों की तारणी
नारी होकर भी
पुरुषों की तुम प्राण हो।
उनकी आत्मा हो
आत्मा का स्वाभिमान हो।
हे नारी,
तू ममता की मूरत,
अपना सर्वस्व लुटाकर
पुरुषों के पुरुषत्व को जगाती हो।
तुम अमृत बाँटकर
पुरुषों के विष को पी जाती हो।
हे नारी,
हे क्षमा की देवी,
तेरे चरित्र का, यशगान अधूरा है,
तेरी महिमा का बखान अधूरा है।
कोई शब्द नहीं शब्दकोष में
कि पूर्ण हो तेरी स्तुति
कर रहा हूँ हे नारी अर्पित
मैं तुमको ये भाव भभूती।

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पुष्पगंधा प्रकाशन,
कवर्धा (छत्तीसगढ़)

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