बुन्देली कविता -- डॉ0 महावीर प्रसाद चंसौलिया -- आतंकी हौवा


जुलाई-अक्टूबर 10 ---------- वर्ष-5 अंक-2
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बुन्देली कविता-डॉ0 महावीर प्रसाद चंसौलिया
आतंकी हौवा


कब तक भैया दुबके रैहो सुन आतंकी हौवा।
बचपन में हौवा कह-कह के हमें सुलाते दौवा।।
कैसी है यह सुदृढ़ सुरक्षा जो आतंकी घुस आते।
फिर महिनों मेहमानी करके अपना कहिर दिखाते।।
बहुतक पकड़े देशद्रोह में देशी और विदेशी।
अधिकारी गणमान्य व्यक्ति उनमें से बहुतक देशी।।
छानबीन लम्बी चलती अरु वर्षों निर्णय है ना।
लम्बी बहुत न्याय प्रक्रिया है अन्त कछु ना होना।।
बढ़ते भ्रष्टाचार न्याय में छूटें भ्रष्टाचारी।
कारण ये है रक्तबीज से बढ़ते अत्याचारी।।
छलनी हो गई देश सुरक्षा छेद हो गए भारी।
आतंकी उनमें से निकलें करते मारा मारी।।
बने पाहुने रहते को हैं करते हैं मनमानी।
हमें टोह करनी है उनकी को हैं जीवनदानी।।
देखो अपने गिरहवान में ताको बाद परोसी।
अपनोई सिक्का खोटो परखन बारो का दोषी।।
चिन्हित करकें एक-एक कर मेटो सभी निशानी।
ऐसे होगी आतंकिन की भैया खतम कहानी।।
देश सुरक्षा रावण सी हो मच्छर प्रवेश ना पाएँ।
गगन पंथ से उड़ें विदेशी छाया पकड़ गिरायें।।
पहले देशी आतंकिन खों चौराहिन पै मारो।
दहलें सकल विदेशी सुनकें करने लगें किनारो।।
आस्तीन के साँपन को फन कुचरो पत्थर मारो।
‘देशप्रेम सर्वोपरि है’ ‘महावीर’ हृदय में धारो।
देशद्रोह सो पाप नहीं इन पापिन को संघारो।
खोल देखु इतिहास शुरू से कर रए बंटढारो।।
लाखों माँ पत्नी बहिनों के जूझे बेटा पति भैया।
शादी को माहुर ना छूटो को है धीर धरैया।।
जैसे-तैसे दूर भगो तो बचपन बारो हौवा।
अब तो सचमुच सबै लील रओ जौ आतंकी हौवा।।

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ग्रा0पो0 बंगरा जिला जालौन (उ0प्र0)

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

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