कैसें सुदरै दसा गाँव की ---- श्याम बहादुर श्रीवास्तव ‘श्याम’



नवम्बर 09-फरवरी 10 ------- बुन्देलखण्ड विशेष
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बुन्देली गीत ---- कैसें सुदरै दसा गाँव की
श्याम बहादुर श्रीवास्तव ‘श्याम’



तुमनें लला! दिबारी की पौंचाई हमें बधाई।
तुमें का पतो इतै गाँव में कैसें कटत हमाई।।
बड़े दरोगा ऐंन अमाउस को बेटा! आ धमके,
करन लगे तपतीस काउ की ऐनइँ अकड़े-बमके,
कागजन पै गिचपिच कर लइ उर छानी ऐंन मलाई।।1।।
जगाँ-जगाँ फड़ लगत जुआ के, अब तौ रोजइँ खिल रओ,
मुखिया-म्हाते सबई खेल रए, कोउ कछू ना कै रओ,
सिगई ग्रान्ट सिरपंच हार गव, काँ से होय भलाई।।2।।
हारै गओ सरजुआ धानुक, करन पेट को हिल्लो,
मौड़ी-मौड़ा खेलें द्वारें बाके नन्दू-गुल्लो,
घरै घुसे दिन-दुफरें ज्वारी, सटर-पटर गठयाई।।3।।
लीप पोत कें घर अपने सब घी के दिया जराबैं,
द्वारे पनरा बजबजात जिनमें कीरा बिल्लाबैं,
डेंगू बीमारी में छै पट्ठन ने, जान गँमाई।।4।।
कइयक लोफर नौकरयन संग जब तौहार मनाबैं,
घूमैं पी सराब गलियन में, बापन को गरियाबैं,
कैबे कों तो दिआ खुशी के, छाती जरत हमाई।।5।।
बैरादारी इत्ती बढ़ गई, कोउ काउ को नइयाँ,
नैकउँ कै दो खरी काउ की, उल्टी करत पनहियाँ,
कैसें सुदरै दसा गाँव की, ऐसी मति बौराई।।6।।

रजिस्ट्रार, शासकीय आदर्श विज्ञान महाविद्यालय, ग्वालियर (म0प्र0)

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

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