चाहना हो रोशनी की ---- हितेश कुमार शर्मा
नवम्बर 09-फरवरी 10 ------- बुन्देलखण्ड विशेष --------------------------------------------- गीत ---- चाहना हो रोशनी की हितेश कुमार शर्मा |
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शक्ति जब होने लगे कम आदमी की।
तब सही पहचान होती है सभी की।।
दर्द घुटनों में बढ़े चलना कठिन हो,
दस दफा कहना पड़े जब, क्या, कहिन हो,
देखना सुनना बहुत दुस्तर बने जब,
चाहना हो साथ चलने को किसी की।
तब सही पहचान होती है सभी की।।
हो सहज हर वस्तु रखकर भूल जाना,
सोचने पर भी, न कुछ भी याद आना,
स्मृति हो क्षीण माजी याद आये,
आईना बन जाये भाषा बेबसी की।
तब सही पहचान होती है सभी की।।
हाँपनी चढ़ जाए गर्मी में जरा सी,
और सर्दी में उठे दिन रात खाँसी,
दिया बाती के लिए उट्ठे नहीं तन,
और मन में चाहना हो रोशनी की।
तब सही पहचान होती है सभी की।।
पास में कोई न हो जब बोलने को,
और साहस हो न साँकल खोलने को,
अपना साया भी लगे विश्वासघाती,
करें किससे बात अपने मन सरीखी।
तब सही पहचान होती है सभी की।।
गणपति भवन, सिविल लाइन्स, बिजनौर-246701 |
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