अपनी नोनी बुन्देली बोली ---- पं0 बाबूलाल द्विवेदी



नवम्बर 09-फरवरी 10 ------- बुन्देलखण्ड विशेष
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बुन्देली कविता ---- अपनी नोनी बुन्देली बोली
पं0 बाबूलाल द्विवेदी



हिन्दी सें मौं लगी बुन्देली सबसे करत किलौली।
जनवा जियै देश कौ जिउ कत, ऊ जिउ की जा बोली।।
आये गंगापुरी-कुढार सें, रुद परतापजू राव।
ओर छोर गंगा सी बै रहॅ धरो ओरछा नाव।।
पडिहारन कौ राज हतौ, जब कम हो गव पर्भाव।
किलो बनावे खौं निउ डारी, करो शेर ने घाव।।
बारा कुंवर हते राजा के बड़े भारती चन्द।
जैजाक भुक्ति (दशार्ण) नाव खौं बदलो उन ने बुन्देलखण्ड।।
ई अपने बुन्देलखण्ड में खेलत रंग रेंगोली।
जनवा जिये देश कौ जिउ कत, ऊ जिउ की जा बोली।।
भये सरगराजा भारती (चंद) के भैया मंझले राजा।
मधुकर शाह ने राज संभारो कालिंजर जस छाजा।।
तिलक लगावे जब अकबर ने लगादई पावंदी।
मानीनई, कत मधुकर शाही आजउ रामानन्दी।।
उनकी रानी कुंवरि गनेश ने देखो काम अधूरो।
ओरछा नाव ससुर दव इनने धाम बना दव पूरो।।
पुक्खन पुक्खन आए राम सुनि जा बोली हमजोली।
जनवा जियै देश कौ जिउ कत, ऊ जिउ की जा बोली।।
जमना सें नरवदा-टोंस, चम्बल नदिया के बीच।
ग्यारा हजार छः सौ पैंसठ गांव, परगना चवालीस।।
आव ककाजू, हवजू, कवजू, बोलत महल मड़ैया।
कोंड़न किसा कानियां के सुन खेलत चैयॉ मैंयॉ।।
गुईंयां गुईंयां चाय चरावें छिरियां, भैंसे, गंईयां।
नोनी बोली सुगर सलौनी और कितउ जा नइयां।
छत्तिस गढ़ी मराठी मालइ, ब्रज भाषा रस घोली।।
जनवा जिये देश कौ जिउ कत, ऊ जिउ की जा बोली।।
जिला सात उत्तर प्रदेश के झांसी और ललितपुर।
चित्रकूट, जालौन, महोबा, बांदा और हमीरपुर।
मध्य प्रदेश के चउदा-दतिया, रायसेन, जब्बलपुर।
गुना, हुसंगाबाद, शिवपुरी, ग्वालियर और छतरपुर।।
पन्ना, सागर, टीकमगढ़, विदिशा, दमोह, नरसिंगपुर।
भारत को जिउ-जो बुन्देलखण्ड-जिला इकईस मिलाकर।
सब के ओंठन ओंठन खेलत हँस-हँस करत ठिठौली।।
जनवा जिये देश कौ जिउ कत, ऊ जिउ की जा बोली।।
कोउ कत जा सिरमौन सवन में, कोउ बेलन की बेली।
हिन्दी के माथे की बिंदिया, कोउ कत इयै सहेली।।
परम रसीली, गुन गरवीली-है एकइ अलबेली।
मिसरी सी मीठी नौनी जा मनहर नई नवेली।।
सब भाषन की बर कैं सेली-पैरा राम ढकेली।
बाँके बोल बुन्देली के जे-‘मधुप’ की मधुर बुन्देली।।
पली, पुसी, खेलत, बड्डी, भइ सन्सकिरत की ओली।
जनवा जिये देश कौ जिउ कत, ऊ जिउ की जा बोली।।

मानसमधुप, साहित्यायुर्वेद रत्न,
ग्राम छिल्ला बानपुर, ललितपुर, उ0प्र0

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