पत्री (कुण्डली) --- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी'



नवम्बर 09-फरवरी 10 ------- बुन्देलखण्ड विशेष
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लघुकथा --- पत्री (कुण्डली)
राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी'



रमेश के ब्याव कै समय पत्री (कुण्डली) को एनई अच्छी तरह से मिलाबे के बाद ही पंडित जू ने कई ती कि इनके तो सबई गुन मिलत हैं। राम-सीता सी जोड़ी रये। पंडित के जा कैबे भर की देर हती, रमेश को ब्याव कर दओ गओ। कछु दिनन तो नई बहू को पाकै सबई जने खुश रये, फिर नई बहू ने अपनौ असली रूप दिखावों चालू कर दओ। अपने घमंडी एवं लड़ंकू स्वभाव के कारण घर में रोज चैं-चैं मची रत्ती, बहू रमेश से जा घर से अलग रहे के लाने कतती। रमेश जा के लाने राजी न हतो, सो वा तो रमेश से भी रात में लड़त हती। रोजई की किलकिल से रमेश को जी उनई भर गओ हतो। सौ रमेश ने ऊकी छोर-छुट्टी (तलाक) कर दई। अब रोज की दांती से घर को चैन मिल गओ।
एक दिना घर के सब जने दलान में बैठे हते तो दद्दा ने कई की जाने कौन घरी हती जब जा नई बहू अपने इतै आयी हती। इनै तो नकुअन में दम कर दई हती। तो वईं बैठो एक छोटो मोड़ा बोलो-‘‘दद्दा, जब अपुन ने चाचा को ब्याव करो हतो तो अपुन के पंडित कक्का ने जा कई ती कि जा जोड़ी तो राम-सीता सी रये। इनके तो सबई 36 गुण मिलत है फिर जा कैसी पत्री पंडित जू ने मिलाई?’’
दद्दा को जबाब में कछु कतन न बनो।

संपादक-आकांक्षा, नई चर्च के पास,
शिवनगर कालोनी, टीकमगढ़ (म0प्र0)

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

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