बुन्देली गारी ---- पुष्पा खरे



नवम्बर 09-फरवरी 10 ------- बुन्देलखण्ड विशेष
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बुन्देली गारी/पुष्पा खरे



चाय पी पी के दूध घी की कर दई मंहगाई।
बड़ी आफत जा आई।
बेंचे दूध घरे न खावें, लड़का वारे बूंद न पावें।
चाहे पाहुन तो आ जावें
देवी-देवता लौ होम देशी घी के न पाई। बड़ी आफत जा आई।।
घर को बेचे मोल को धरते, रिश्तेदारों से छल करते,
जे नई बदनामी से डरते,
डालडा से काम चले हाल का सुनाई। बड़ी आफत जा आई।।
घी और दूध के रहते भूखे, जब तो बदन परे है सूखे,
भोजन करत रोज के रूखे
स्वाद गोरस बिन भोजन को समझो न भाई। बड़ी आफत जा आई।।
देशी घी खों हेरत फिरते-चालीस रुपया सेर बताते,
डालडा तो खूब पिलाते,
बेईमानी की खाते हैं खूब जे कमाई। बड़ी आफत जा आई।।
जब से चलो चाय को पीना, जिनखों मिले न धड़के न सीना
आदत बालों का मुश्किल है जीना,
सुबह शाम उनको परवे न रहाई। बड़ी आफत जा आई।।
अपना बने चाय के आदी, चालू स्पेशल को स्वादी,
कर दई गोरस की बरबारी।
बीच होटल में देखो जहाँ चाय है दिखाई। बड़ी आफत जा आई।।

7, राजेन्द्र नगर, सतना (म0प्र0)

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

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