बुन्देली कविता - रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु'
नवम्बर 08-फरवरी 09 ------- बुन्देलखण्ड विशेष ---------------------------------------------------------------- बुन्देली कविता रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ’इंदु’ |
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(1) जी सें जो बुन्देलखण्ड, विश्व में ललाम जू
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रामजू रमाये जहाँ रज-रज, कण-कण,
जी सें जो बुन्देखण्ड विश्व में ललामजू।
ललामजू विराजते हैं विश्व वीर हरदौल,
छत्रसाल आल्हा और ऊदल के धामजू।।
धामजू है रानी झाँ, झलकारी औ अवन्ति,
नारी शक्ति भी प्रचण्ड इंदु आठों यामजू।
यामजू अवध रानी ने तो दिये वनवास,
ओरछा की रानी ने बनाये राजा रामजू। ।
रामजू की आरती उतारतीं हैं बार-बार,
हीरन की वीरन की भूमि कला कामजू।
कामजू है खजुराहो, कालिन्जर, देवगढ़
पन्ना के तो जुगल किसोर अभिरामजू।।
अभिरामजू हैं गिद्धवाहिनी, रतनगढ़,
मैइहर, पीताम्बरा, शीतला के धामजू।
धामजू को भेज दी खड़ाऊँ गये नहीं आप,
अवध लिवाने आया ‘इंदु’ यहाँ रामजू।।
रामजू की रामायण, चित्रकूट के चरित्र,
तुलसी की जन्मभूमि, कर्मभूमि नामजू।
नामजू हैं केशव, बिहारी, ब्रन्दाव्यास, गुप्त,
ईशुरी की फाग ‘इंदु’ लेखनी ललामजू।।
ललामजू है नर्मदा, बेतवा, पहूज, टौंस,
यमुना, धसान, केन, सिन्धु अभिरामजू।
अभिरामजू प्रकृति, कृति कला, ग्राम-ग्राम,
भारत के खंड में, बुन्देलखण्ड रामजू।।
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(2) मिट गईं राम मड़इंयाँ
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पता नहीं आसों के बदरा, का हैं राम करइंयाँ।
आफत के मारे किसान की, भर-भर जात तरइंयाँ।।
जैसे तैसे फसल बोई थी,
सूखी बऊ बिन पानी।
भई फसल पै बदरा ढाड़ें,
अब कैसे करें किसानी।।
जीको तको आसरो अबनों, नेंक काम को नइयाँ।
आफत के मारे किसान की, भर-भर जात तरइंयाँ।।
असवासन दे-दे कें झूठो,
ऊको कर्ज बढ़ा दओ।
माफ करावे के भाषन दे,
राशन और छुड़ा लओ।।
कयँ को सबइ भ्रष्ट भये भारत, अपनी भरें पुटइंयाँ।
आफत के मारे किसान की, भर-भर जात तरइंयाँ।।
मानुष की का, अब तो भूखे,
ढोर बछेरू मर रये।
बैरी बन रये सब किसान के,
अपनो बंडा भर रये।।
साउकार के बँगला बन गये, मिट गईं राम मड़इंयाँ।
आफत के मारे किसान की, भर-भर जात तरइंयाँ।।
सावन सूने, भादों सूने,
जल के लाने तरसे।
चढ़े चैत पै निष्ठुर बदरा,
लगत अबईं हैं बरसे।
‘इंदु’ चेतुआ चरन पखारे, जाओ और गुसइंयाँ।
आफत के मारे किसान की, भर-भर जात तरइंयाँ।।
बड़ागाँव (झाँसी)-284121(उ0प्र0) मो0-9305172961 |
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