खटिया
नवम्बर 08-फरवरी 09 ------- बुन्देलखण्ड विशेष ---------------------------------------------------------------- कहानी --------------- मेघराज सिंह कुशवाहा |
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बैशाख का महीना। गेहूं, चना की फसल कट चुकी है। खेत खाली पड़े हैं। हरियाली हीं दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती। चारों ओर साफ सपाट दिखाई दे रहा है। ऐसा लगता है जैसे गर्मी आ जाने पर शोक-संतृप्त खेतों ने बाल मुड़वा लिये हैं। सूखे खेतों में दर्रे फट आये हैं। खेत मुँह बाये हैं जैसे बिना दाँतों की कोई बुढ़िया आधा मुँह खोले हुए कहना चाहती है, पर कह न पा रही है। गर्मी जोरों पर है। सिंचाई का कोई साधन सुसुनई नदी के किनारे बसे इमिलिया गाँव में नहीं है, न कोई नहर, न कोई ट्यूबवेल। कुओं का ही सहारा है। गाँव के आधे से ज्यादा कुए सूखे पड़े हैं। जिनमें थोड़ा-बहुत पानी बचा है। उन कुओं के किसान एकाध बीघा में शाक-सब्जी उगाये हुए हैं। झुंड के झुंड जानवर और आदमी गर्मी की तपन से बचने के लिए पेड़ों की छाया में ऊंघते दिखाई देते हैं।
रामदीन एक छोटा किसान, इस वर्ष फसल ठीक-ठाक हो गई घर के खर्चे और बिटिया का कछोटा छुड़ाने की विदाई के बाद जो पैसा बचा उससे पडुवा वाले खेत में कुँआ खुदवाने का मन बनाया। अपने गाँव के ही पचसेरा महाराज से पत्रा दिखाने के बाद लगन सुदवाकर पंडित जी के बताये अनुसार सत्यनारायण की कथा और ब्राम्हण भोजन खेत में रामदीन ने कराया। पूजा-अर्चना के बाद पंडित पचसेरा महाराज ने पूजा-पाठ, दान-दक्षिणा के बाद रामदीन से ही खेत में एक जगह पाँच फावड़े मिट्टी खुदवाकर शुभ मुहूर्त में खुदाई का काम शुरू करा दिया है। पचसेरा महाराज ने रामदीन को आशीर्वाद देते हुए कहा, कि जजमान धरम-करम करने से तथा ब्राम्हण भोजन कराने से तुम्हारा खेत पवित्र हो गया है। इसमें अगर खारा पानी भी होगा तो वह मीठा हो जावेगा।
रामदीन ने अपने पड़ुवा वाले खेत में कुँआ खोदने का ठेका बगल के गाँव करौंदा के ठेकेदार करोड़ीमल को दिया। करोड़ीमल ने अपने मजदूर कनछेदी, घसीटी, किलकोटी, रजवा और तरिया के साथ रामदीन के खेत की मेड़ पर लगे आम, महुआ के पेड़ों के नीचे घास-फूस की टपरिया बना ली और कुँआ खोदने का काम करने लगे। दिन भर मेहनत करने के बाद मजदूर उन झोपड़ियों में खाना बना खा-कर सो जाते हैं और सुबह उठकर खाना-पीना करके फिर कुँआ खोदने लगते। उन मजदूरों में एक लम्बा, मोटा, काला भूत जैसे शरीर वाला मजदूर जो बहुत ही आरामतलब और कामचोर था। एक रात करवट बदलते हुए उसने अपने पास लेटे हुए घसीटा से कहा कि ‘‘जमीन में लेटने से नींद पूरी नहीं होती, खटिया का इंतजाम हो जाये तो बहुत अच्छा हो।’’ कनछेदी की बात सुनकर घसीटा ने कहा कि ‘‘तुम कहीं के जमींदार, राजा, महाराजा नहीं हो, व्यर्थ बकवास करके मेरी नींद क्यों खराब करते हो। मजदूर के घर में पैदा होकर खटिया के ख्बाव देखना आकाश-कुसुम को पाने जैसा है। तुम्हारे भाग्य में खटिया, गद्दा, तकिया, रजाई नहीं है और न कभी होना है। कथरियों में इतना जीवन कटा, आगे भी इसी तरह कटना है। सो जाओ, मेरी नींद खराब न करो।’’
कनछेदी ने कहा-‘‘मजदूर के यहाँ पैदा होने का मतलब यह तो नहीं कि सपने न देखें आगे बढ़ने का प्रयास न करें। गरीबों को क्या आराम से जीने का हक नहीं है। घसीटे अगर तू मेरा साथ दे दें तो कल सबेरे ही खटिया, गद्दा तो क्या देशी घी का हलुवा, पूड़ी का भी इंतजाम कर दूँ।’’
घसीटा बोला-‘‘क्या तुम्हारा दिमाग फिर गया है जो बक-बक कर रहे हो। तुम तो मरोगे ही साथ में मुझे भी मरवा दोगे। गद्दा, तकिया कोई लकड़ी का गट्ठर नहीं जो जंगल गये और काट कर ले आये। रतजगा मत करो, सबेरे कुए में नीचे उतर कर खुदाई करना है, चूके तो काम से गये।’’ घसीटे ने आगे समझाया-‘‘तेते पाँव पसारिए जेतीं लांखी सौर। भइया कनछेदी हवा में न उड़ो। जमीन पर चलो। भगवान को खटिया, हलुवा, पूड़ी देना होता तो किसी राजा-रईस के घर में पैदा करता। सब उसकी मर्जी से ही होता है। एक पत्ता भी उसकी मर्जी के बिना नहीं हिलता।’’
कनछेदी बोला-‘‘हमारी इन्हीं बातों ने हमें निकम्मा बना दिया। क्या आदमी कुछ नहीं करता? सब कुछ क्या ईश्वर ही करता है? घसीटा ने फिर कहा-‘‘सो जाओ भइया। मेरी नींद क्यों खराब कर रहे हो। सबेरे यदि काम नहीं हुआ तो ठेकेदार भगा देगा। बच्चे भूखों मरेंगे।’’ कनछेदी फिर भी न माना, सोते-सोते उसने कहा-‘‘ठीक है भइया। फिर भी मेरी एक बात मान लेना। तुम पण्डा बन जाना मैं घूर बाबा का घुल्ला बन जाऊँगा। फिर देखना खटिया, गद्दा, तकिया, हलुवा, पूड़ी सब आ जावेगा।’’ बातें करते करते दोनों सो गये। पता नहीं चला कि सबेरा कब हो गया।
ठण्डी-ठण्डी हवा, सुबह का सुनहरा मौसम, चिड़ियाँ चहकने लगीं, गाँव के बच्चे, बूढ़े, औरतें सब पौ फटते ही शौचक्रिया के लिए खेतों की ओर आ-जा रहे थे। कोई दातुन कर रहा है, कोई हाथ-पैर धो रहा है, कोई नहा रहा। सब अपने-अपने काम में लगे हैं। कनछेदी बड़े सबेरे नहा धोकर तैयार हो गया। खेत की मेड़ पर ऊँचाई में बैठ कर जोर-जोर से हकहकाने लगा, कुल्हाटें खाने लगा, चीख कर जोर की आवाज करने लगा। आवाज सुनकर घसीटा आ गया। जोर-जोर से घसीटा चिल्लाया-‘‘बाबा सिरे आये हैं। कनछेदी भगत के। ढाक लाओ, गाँव वालों सच्चा देवता है। पूजा का इंतजाम न हुआ तो अनर्थ हो जायेगा। सब मारे जायेंगे। ढोर, डंगर कुछ न बचेगा, सब स्वाहा हो जायेगा।’’ घसीटे की आवाज सुनकर गाँव के बच्चे, बूढ़े नर-नारी इकट्ठे हो गये। ढाक बजने की आवाज सुनकर भारी भीड़ इकट्टी हो गई। लोभान, धूप की धुनी जलने लगी। नींबू, सिन्दूर, अण्डा, नारियल, पूजा का सब सामान आ गया। कनछेदी का मोटा-ताजा शरीर उचकने-कूदने लगा। जोर-जोर से पीठ पर अपने हाथ से कोड़े लगाने लगा। लोगों में काना-फूसी होने लगी कि सच्चा देवता है। घसीटे ने कहा ‘‘घूर बाबा ने जाने कितनों को माला-माल किया है, बच्चा दिया, धन-दौलत दी, बीमारी ठीक की, अंधो को आँखें दी, बहरों को कान दिये, शादी ब्याह कराये सच्चा देवता है।’’ लाइन लगाकर गाँव के गरीब, पिछड़े, अंधविश्वासी एक-एक कर फरियाद करने लगे। देवता सभी की मुराद पूरी करने का वचन देकर आश्वस्त करते और भभूत के साथ आशीर्वाद देते।
पति-पत्नी का एक जोड़ा हाथ जोड़कर खड़ा हुआ। घूर बाबा ने कहा-‘‘फल नहीं लगता घटोरिया बाबा के सामने पेशाब कर दी थी, शादी की विदा के समय गाँव के मेड़े पर। घटोरिया बाबा तभी से नाराज हो गये, इसी से फल नहीं लग रहा है। जा माफी माँग घटोरिया बाबा से। पूरनमासी के दिन बकरे की बलि चढ़ा देना। पाँच नीबू, पाँच अण्डा, पाँच पान, पाँच सुपारी, सेंदूर लगाकर इतवार, बुधवार को चैराहे पर बाबा के नाम से चढ़ा देना। तेरी मनोकामना पूरी होगी। इस तरह गाँव के बूढ़े, बच्चे, नर, नारी फरियादियों को बाबा ने आशीर्वाद दिया। गाँव की खुशहाली, अच्छी फसल तथा सुख समृद्धि जीवन की कामना की। गाँव में छोटी बिरादरियों में टोना-टुटका बहुत माना जाता है। इसीलिए घूर बाबा का प्रभाव गाँव के इन्हीं लोगों पर पड़ा। घूर बाबा और उसके पण्डा घसीटा के लिए गद्दा, तकिया, खटिया का इंतजाम तो हुआ ही साथ ही आटा-दाल, देशी घी का इंतजाम हो गया। घसीटा ने होम धूप कर नींबू, अण्डा की बलि दी, सिन्दूर चढ़ाया, नारियल तोड़ा, सुपारी, पान की चढ़ोत्तरी दी। बाबा से शांत होने की प्रार्थना की, घूर बाबा जोर-जोर से उछल-कूद करने के बाद हकहकाकर शांत हो गये। सभी लोग अपने-अपने काम पर चले गये। मजदूर कुँए पर काम करने लगे।
कनछेदी ने कहा-‘‘कहो घसीटे मेरी धूर्त विद्या सफल हो गई। गाँव वालों ने सोने-खाने का पूरा इन्तिजाम कर दिया। आदमी हिम्मत न हारे तो सब कुछ पाया जा सकता है।’’ घसीटा ने कहा ‘‘यह धोखाधड़ी है। ठगी है। गाँव के सीधे-साधे लोगों को ठगना अच्छा नहीं है।’’
कुँआ खुद गया, मजदूर और ठेकेदार अपने गाँव लौट गये। समय बीतता गया। ठेकेदार, मजदूर उस घटना को भूल गये। डेढ़ वर्ष बाद कनछेदी के गाँव में एक पति-पत्नी का जोड़ा अपने बच्चे को गोद में लिये आया। गाँव में कनछेदी भगत को पूछा। उनका घर पूछा। गाँव वालों ने बताया कि कनछेदी तो हैं पर उसको कोई देवता नहीं आते। पति-पत्नी ढूँढ़ते-ढूँढ़ते कनछेदी के दरवाजे पर पहुँच गये तो देखा कि वही मोटा-ताजा, काला-कलूटा आदमी चबूतरे पर बैठा है। दोनों ने कनछेदी के पैरों में बच्चे को लिटा दिया। पाँव छुए और कहा कि आपके आशीर्वाद का ही परिणाम है यह। कनछेदी ने समझाया कि मुझे कोई देवता नहीं आते। मैंने तो खटिया के लिए झूठा नाटक रचा था पर वह दम्पति नहीं माना। कनछेदी के पाँव पकड़कर पूरी पोशाक के साथ नारियल और एक सौ एक रुपया भेंट दी साथ ही प्रार्थना करके कहा कि इस बच्चे की शादी होगी तो आपको आशीर्वाद देने जरूर आना है। कनछेदी आश्चर्यचकित मुँह बाये पति-पत्नी को देखता रहा।
1506, अंतियाताल रोड, लोहा मण्डी, झांसी |
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