बाल डायरी के कुछ पन्ने
विशेष / जुलाई-अक्टूबर 08
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सुधा भार्गव
माँ आप सुबह सात बजे ही अपने आफिस के लिए घर से निकल पड़ती हो। केवल चाय पी पाती हो। लौटती हो बहुत थकी हुई। मुझे आप पर बहुत तरस आता है। जी चाहता है भाग-भाग कर आपके काम करूँ। लेकिन कर नहीं पाता। करूँ कैसे? जानता ही नहीं उन्हें करना। कल मेरा गृह कार्य कराते समय आप बहुत झल्ला रहीं थीं। मैंने सोचा आपके आने से पहले सुलेख तो लिख ही सकता हूँ। बहुत ध्यान से धीरे-धीरे लिखा। घर में आपके घुसते ही मैं इतराते बोला था ‘मैंने अपना गृह-कार्य खत्म कर लिया। देखो....माँ!’
‘क्या माँ...माँ की रट लगा रखी है। एक मिनट तो साँस लेने दे।’ गुलाब सा खिला मेरा चेहरा मुर्झा गया। मैं गुमसुम बैठ गया ....शायद मनाने आओ....नहीं आईं। चाय पीने के बाद सो गईं। शाम को उठीं। उस समय मैं खेलने बाहर जा रहा था। आपने मुझे रोक लिया। ‘कहाँ चले नवाब, लाओ, जरा देखूँ क्या किया है?’
सुलेख पर नजर पड़ते ही तमतमा उठीं-‘अरे! यह क्या? ज्यादातर शब्द लाइन से बाहर निकले हैं। कोई अक्षर छोटा है कोई बड़ा। कितनी बार कहा है कि ठीक से लिखा कर पर नहीं, ना सुनने की तो कसम खा रखी है।’ मुझे डाँट कर तुम चली गईं। मेरी सारी खुशियाँ भी अपने साथ ले गईं। माँ, आप दुनिया में पहले आईं मैं बाद में आया। आपके हाथ बड़े-बड़े हैं मेरे छोटे-छोटे हैं। तुम्हें लिखने का जो अनुभव है वह मुझे नहीं। क्यों आशा करती हो कि मैं आपकी तरह मोती से अक्षर बनाऊँ। मुझे कुछ समय दो और अभ्यास करने दो।
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मैं एक-एक दिन उँगलियों पर गिनता रहता हूँ सोमवार, मंगल, बुध, ब्रहस्पति, शुक्र; शनिवार पर आकर रुक जाता हूँ। शनिवार को आपकी छुट्टी होती है। आज भी तो शनिवार है। आपके साथ बाहर घूमने जाऊँगा, अपनी मनपंसद आइसक्रीम खाऊँगा। खुशी के मारे हवा में उड़ा जा रहा हूँ। ओह यह क्या हुआ? आपकी तो किटी पार्टी निकल आई। आपको तो जाना ही पड़ेगा। लेकिन पार्टी तो 3 बजे से शुरू है। आप कहाँ हो? माँ-माँ....।
दिव्या से मालूम हुआ आप बाजार गई हो साड़ी खरीदने। साड़ी.....साड़ी से तो आपकी दो अलमारियाँ भरी पड़ी हैं। पापा ने एक बार टोक दिया था-‘जब भी कहीं जाती हो नई साड़ी खरीदती हो। एक साड़ी दो बार भी पहन सकती हो।’ आपने छूटते ही कहा-‘आप नहीं समझेंगे यह मेरी शान का सवाल है। फिर मैं कमाती हूँ तो अपने ऊपर खर्च भी कर सकती हूँ। आपको बुरा क्यों लगने लगा।’ पापा बहुत कम आपके मामले में बोलते हैं और बोलते हैं तो इसी तरह आप उन्हें चुप करा देती हो।
माँ, पापा भी तो धन कमाकर लाते हैं वे तो अपने पर कभी इतना खर्च नहीं करते हैं। वे सबका ध्यान रखते हैं और आप केवल अपना।
आप दो बजे लौटकर आईं। जल्दी-जल्दी तैयार होकर बोलीं-‘तुम्हें मिसेज सिन्हा के घर छोड़ देती हूँ। लौटते समय ले लूँगी।’
‘माँ, मैंने खाना भी नहीं खाया।’
‘क्यों नहीं खाया। एक दिन अपने आप खा लेता तो क्या हो जाता? दिव्या से ले लेता। अब तो वह चली गई। मुझे देर हो रही है। ऐसा कर बिस्कुट का पैकिट ले और आंटी के यहाँ खा लेना। आलू चिप्स भी हैं। पेट तो भर ही जायेगा।’
सिन्हा आंटी ने गर्म-गर्म फुल्के बना कर दिये। मैंने पेट भर कर खाया। वे बोली-‘खाने के समय बिस्कुट नहीं खाओ। बाद में खाना।’ उनकी बात ठीक लगी। मैं सो गया। सोकर उठा तो दूध का गिलास लिए खड़ी थीं। उनके प्यार में मैं नहा गया और गटगट दूध पी गया।
मैंने एक बार भी माँ को याद नहीं किया। जब तक आप नहीं आईं मैं सिन्हा आंटी के बेटे पप्पू के साथ खेलता रहा। आप आईं तो सोचा क्यों आ गईं और देर से आतीं तो अच्छा था?
घर पहुँचकर आपने मुझे दूध दिया। मेरे पेट में जगह ही नहीं थी। बड़े आश्चर्य से बोलीं-‘बिस्कुट खाने के बाद भूख नहीं लगी।’ ‘आंटी ने दाल रोटी खिलाई और दूध भी पिला दिया’, मेरे यह कहते ही आप गुस्सा हो उठीं।
‘नदीदा कहीं का, तुझे तो हम कुछ खाने को नहीं देते, टूट पड़ा भुख्खड़ की तरह सूखी रोटी पर। खाया तो खाया दूध भी पीकर आ गया। मिसेज सिन्हा भी क्या सोचती होगी हम तेरा ख्याल नहीं रखते।’
तुमने जितनी दुनिया देखी है उतनी मैंने नहीं। आप क्या सोचती हैं दूसरा क्या सोचता है मैं नहीं जानता। जो मेरा मन कहता है वह मैं कर लेता हूं। मुझे अपनी इच्छा के बारे में पहले से बता दिया करो मैं वही कर लिया करूंगा।
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यह दुनिया मुझे अद्भुत लगती है। रात में तारे चमकते देखकर मैं खुशी से खूब उछलता हूं। उन्हें पकड़ने की कोशिश करता हूं पर मेरे हाथ नहीं आते। दिन में तो न जाने वे कहाँ छिप जाते हैं। ढूँढते-दूँढते थक जाता हूँ। आपसे मैंने एक बार इनके बारे में पूछा भी था। हँसकर बोलीं-‘मैं फोन करके पूछ लूँगी वे कहाँ हैं?’ आज तक नहीं पूछा। पूछा भी होगा तो भूल गईं हो। स्कूल के बगीचे में लाल नीले पीले फूल खिले हैं। मैंने यह भी प्रश्न पूछा था आपसे-‘हम लाल पीले नीले क्यों नहीं होते?’ गम्भीरता से आपने जवाब दिया-‘इसका उत्तर तो भगवान ही दे सकते है। उसने ही हम सबको बनाया है। उसे भी फोन करना पड़ेगा।’
कुछ दिनों बाद मैंने फिर पूछा-‘माँ फोन किया था?’ ‘अरे फोन नहीं हो पाया। भगवान तो आकाश में रहते हें वहाँ की टेलीफोन लाइन खराब है।’
मुझे लगा मेरी बातों के लिए आपके पास समय नहीं। कुछ दिनों की ही बात है फिर तो मैं बड़ा हो जाऊँगा। जब तक छोटा हूं, मुझे अपना कुछ समय दे दो। दुनिया के रहस्य मेरे दिगाम में खलबली मचा देते हैं जो सोने नहीं देते। उनके बारे में बताकर मेरी जिज्ञासा शांत कर दो।
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माँ अक्सर आप सात बजे तक घर आ जाती है। आज तो रात के नौ बज गये। शायद आपके आफिस में मीटिंग थी। पापा टर्की गये हैं। आप भी बाहर, पापा भी बाहर। पापा यह नौकरी छोड़ क्यों नहीं देते। एक महीने में 20 दिन अमेरिका, इटली न जाने कहाँ-कहाँ जाते रहते हैं। आपके पास मेरे लिए समय नहीं। पापा अवश्य मेरे साथ गप्पबाजी करेंगे। मुझे बाजार से मेरी इच्छा के जूते, टाफियाँ दिलायेंगे। एक बार आपने शायद पापा से कहा भी था-‘बाहर जाने से अच्छा है अपने देश की ही नौकरी।’
पापा तो भड़क उठे-‘तुम नौकरी क्यों नहीं छोड़ देती। घर को कुशलता से चलाना भी बहुत बड़ा काम है। तुम्हें कितना पैसा चाहिए? मैं दूँगा। घर को बर्बाद होने से बचा लो।’ पापा की आवाज रोनी सी हो गई थी। मैं बहुत घबरा गया। पापा से लिपट गया। पापा ने गोदी में लेकर मुझे चूम लिया। समझ में नहीं आया पापा मेरी तरह रोये रोये क्यों हो गये? वे तो मेरी तरह छोटे नहीं है फिर भी कोई बात मिलती है हम दोनों की।
समय काटे नहीं कट रहा है। हवा से पर्दा भी हिलता है तो लगता है आप आ गईं। टी0वी0 देखते देखते दस बार नींद के झोंके ले चुका हूँ। वीडियो गेम खेला, मनपसन्द चाकलेट, केक भी खा लिया। आलू चिप्स के तो दो पैकिट खत्म कर दिये। डिनर हो गया समझो। सोना भी चाहता हूँ और नहीं भी। नींद का समय है नींद तो आयेगी पर आपसे बात नहीं हो पायेगी। कितनी देर से आपका चेहरा देखने को तरस रहा हूँ। सुबह उठकर वही भागदौड़। काम की भागदौड़ नहीं रहती। आपके मोबाइल टेलीफोन की भागदौड़ रहती है। नानी से आप बहुत देर तक बातें करती हो। कभी सोचा आप मेरी माँ हो। मेरा दिल भी आपके सामने खुल जाना चाहता है। माँ की खुशबू चाहता है। चाहता हूँ आप मेरे बालों में अपनी सुन्दर उंगलियाँ घुमाओ और मैं गहरी नींद में खो जाऊँ। मुझे अलग कमरे में सुलाती हो ताकि स्वस्थ रहूँ। ठीक ही सोचती हो मगर इस मन का क्या करूँ। रात में नींद खुलने पर बाथरूम जाता हूँ। नींद उचट जाती है। डर लगता है। किसी कोने जंगली बिल्ली नजर आती है। कहीं साँप देखता हूँ। काश आपकी गोद में छिप जाता। एक दिन आपके कमरे का दरवाजा खड़खड़ा दिया था तो मुझे ऐसा दुत्कार दिया जैसे गली के कुत्ते को भगाते हैं। लगता है मन से जरूर बीमार हो जाऊँगा।
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आज रात मौसी-मौसा जी मिलने आये थे। मैं गुमसुम बैठा उनकी बातें सुन रहा था। मैंने सोचा मुझे भी कुछ कहना चाहिए वर्ना मौसी समझेगी मैं गूँगा हूँ। मैंने डरते-डरते कहा ‘मौसी आप एक बात बतायेंगी-हवाई जहाज जमीन पर भी दौड़ता है हवा में भी उड़ता है। चिड़िया धरती पर फुदकती है आकाश में उड़ती है, तितली फूलों पर बैठती है और पंख फैलाये उड़ान भरती है मैं केवल जमीन पर चलता हूं उनकी तरह उड़ क्यों नहीं सकता?’
‘बेटे, तुम्हारे पंख नहीं हैं’
‘क्यों नहीं हैं?’
‘कितनी बार कहा है बड़े जब बाते करें तो बीच में नहीं बोलना चाहिए। फालतू की बात मत करो और जाओ अपने कमरे में।’
बड़ी बेरहमी से माँ तुमने मेरा गला घोंट दिया। तुम मुझसे ज्यादा शक्तिशाली हो। मुझ कमजोर ने घुटने टेक दिये। आँसुओं को संभालता वहाँ से उठ गया। मेरा भी तो सबसे मिलने का मन करता है। सबके साथ हँसने को व्याकुल रहता हूँ। अनुशासन ही सिखाना है तो आप प्यार से समझा देतीं। इस तरह मेरा अपमान करने की क्या जरूरत है। मेरी भी कोई इज्जत है। छोटा हूँ तो क्या हुआ? महसूस तो उसी तरह से करता हूँ जैसे आप करती हैं। मैं आपसे अच्छा व्यवहार करूँ इसके लिए आपको भी शिष्ट होना पड़ेगा।
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दादी माँ बताती हैं कि आप रोज मंदिर जाती थीं। भगवान से कहती थीं कि मुझे एक गुड्डा चाहिए। उसने गुड्डे के रूप में मुझे भेज दिया। उस समय मेरे दाँत नहीं थे, चल-फिर नहीं सकता था। आप मुझे दूध पिलातीं, नहलातीं, गोदी में लिए लिए घूमतीं। धीरे-धीरे दाँत निकल आये, चलने-फिरने लगा। खाना भी खुद खा लेता हूं। पर मां यह सब धीरे-धीरे ही तो हुआ। अभी तो मुझे बहुत कुछ सीखना है। आपको धैर्य तो रखना ही पड़ेगा। क्यों जल्दी-जल्दी अपनी आवाज कड़वी कर लेती हो? लगता है मुझसे तंग आ गई हो, पर मेरा क्या कसूर? मैं खुद आपके पास नहीं आया बल्कि बुलाया गया। मैं तो भगवान का दिया उपहार हूँ। इसकी देखभाल तो करनी ही पड़ेगी। चाहे खुश होकर करो, चाहे दुखी होकर। खुश होकर करोगी तो मैं भी खुश रहूँगा। दुखी होकर करोगी तो मुरझा जाऊँगा। प्यार भरी छुअन, प्यार भरी निगाहें तो मैं शुरू से ही समझता हूँ।
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