आलेख -- डॉ0 दिनेश चन्द्र द्विवेदी -- नयी कविता
जुलाई-अक्टूबर 10 ---------- वर्ष-5 अंक-2 -------------------------------------------------------- आलेख-डॉ0 दिनेश चन्द्र द्विवेदी नयी कविता |
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यह विचारणीय है कि अपनी सशक्त सौन्दर्य चेतना के बावजूद छायावाद साहित्यिक परिदृश्य से ओझल क्यों हो गया? इसका कारण यह था कि उसकी सुकुमार संगीतमय शब्दावली युग-जीवन की जटिलताओं, संघर्षों, विसंगतियों तथा अन्तर्द्वंद्वों की अभिव्यक्ति के प्रति पूर्ण समर्पित नहीं रह गयी थी। प्रकारान्त से प्रगतिवाद, प्रयोगवाद से गुजरती कविता नकेनवाद, अकविता, भूखी पीढ़ी की कविता, क्षुब्ध और क्रुद्ध पीढ़ी का कविता, छन्दहीन कविता, लयहीन कविता आदि आन्दोलनों से गुजरती हुई उस मुकाम पर अपनी अस्मिता के हस्ताक्षर कर रही है, जहां कविता में कवितापन की वापसी हुई है। इस कविता को नयी कविता नाम दिया गया, जिसकी कुक्षि में समकालीन और अद्यतन कविता की धारायें सृजनधर्मी सातत्य की जीवन्तता को सुरक्षित किये हुए है।
नयी कविता काव्य-इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यद्यपि यह आज जीवन्त काव्य-धारा के रूप में प्रतिष्ठित है, फिर भी नयी कविता अपनी बदलती हुई मुद्रा की परख के लिए आलोचना के तेवर और प्रतिमानों की मांग करती है। अभी भी कुछ आलोचकों का रुख नयी कविता के प्रति अवज्ञा और विरोध का है। उनकी मानसिकता रोटी, हड़ताल और राजनीति को कविता का विषय मानने से इंकार करती रही है। यदि बदले हुए सामाजिक सोच-विचार के कारण कविता की सोच और संवेदना भी परिवर्तित होती है तो उसकी भूमिका के अनुसार ही आलोचना के मूल्यों और मानदण्डों में भी परिवर्तन आना चाहिए। युग की नब्ज की पकड़ यदि कृतिका के लिए अनिवार्य है तो समीक्षकों में भी इस परिवर्तन के तत्वों की तमीज चाहिए।
आलोचना के क्षेत्र में हवाई हमले का जोरदार चलन है। छायावादी कविता से अनुकूलित रहने के कारण इन्हें आज की कविता ‘डाइजेस्ट’ नहीं हो पाती है। इसके बावजूद रचनाकार आज भी अपनी जमीन से जुड़े हैं। ऐसा तो बिलकुल ही नहीं सोचा जा सकता कि नयी कविता को सुधी समीक्षकों की सहानुभूति नहीं प्राप्त है। जिन्दगी के अन्तिम हाशिए पर आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी को भी कहना पड़ा था कि नयी कविता में समरसता आ रही है, जो एक शुभ लक्षण है। (आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी-नयी कविता, पृ0 33)
यह एक सच्चाई है कि नयी कविता जिन्दगी की असलियत से सीधा साक्षात्कार करती हुई कुछ कहने में चूकती नहीं है। वह जिन्दगी से जुड़े अनेक सवालों का ठीक-ठीक उत्तर ढूढ़ने के क्रम में काफी ‘बोल्ड’ दिखाई पड़ती है। यही कारण है कि आज वह किसी की मोहताज नहीं। दरअसल नयी कविता आज की जिन्दगी की निहायत कड़वी, जटिल एवं भयावह सच्चाइयों को उकेरने एवं समकालीन यथार्थ के उद्घाटन का प्रमाणिक दस्तावेज है। उसकी अनुभूति और अभिव्यक्ति में इतना ताल-मेल रहा है कि उसने जीवन के काठिन्य एवं सम्पूर्ण वैविध्य को सहज सम्प्रेष्य बना दिया है। किसी भी काव्य-धारा को लेकर इतना तीव्र विरोध नहीं हुआ है जितना कि नयी कविता को लेकर हुआ है। इसके बाद भी कविता जीवन के विविध परिदृश्यों, सन्दर्भों तथा आयामों के साथ आगे बढ़ती जा रही है। वस्तुतः यह कविता आम आदमी को आत्मसात करती कविता है, बढ़ते सामाजिक सरोकार की कविता है, सामाजिक सन्दर्भों के अतिविस्तृत स्वीकार की कविता है, तर्क-संगत, विज्ञान सम्मत, चमत्कारवर्जित वस्तु-विन्यास में अव्यवस्थित कविता है तथा वैश्वीकरण, परिवर्तन, लोक तथा नव्य जीवन-मूल्यों के अंगीकार की कविता है।
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पूर्व रीडर एवं अध्यक्ष-हिन्दी विभाग,
गाँधी महाविद्यालय, उरई जालौन