बुन्देली कविता - डालचंद्र अनुरागी


नवम्बर 08-फरवरी 09 ------- बुन्देलखण्ड विशेष
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बुन्देली कविता
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डालचन्द्र अनुरागी

(1) धरती को भगवान
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गांवन के रहवइया-भइया-मेहनत सील किसान।
धरती कौ भगवान कयें हम धरती कौ भगवान।।
ऊसर बंजर धरती तुमनै, खेती जोग बनायी।
कउं बांध हैं डारे तुमनै, कउं पै नहर बहायी।।
न देखी भोरइयां संजा, न देखी दुपहैरी।
अपने हांतन की मेहनत सौं है सुगन्ध फैलायी।।
डटे रहैं, खेतन में ऐसैं, सीमा डटे जवान।
धरती कौ भगवान कयें हम धरती कौ भगवान।।
मेड़न पै मखमल सी दूबा, खेतन में हरयाली।
लहलाती कोमल फसलन कौ है तूं नीकौ माली।।
तोहे गरे कौ हार बनातीं अरसी, मटरी राई।
तेरौ नित अभिनन्दन करती खड़ी खेत की बाली।।
झूम-झूम खेतन में गावैं, फसलैं स्वागत गान।
धरती कौ भगवान कयें, हम धरती कौ भगवान।।
घासफूस की बनी झोपड़ी, कुंआ पास में तेरौ।
जुनई बाजरा की रोटी संग, खारओ मठा महेरौ।।
तोरी शीतलता के आंगू शरमा गई जुन्हइया।
परमानन्द खेतन डीलन में, संजा होय भुरेरौ।।
फटो-पुरानौ, पटका पहरै, दैरओ सबकौ दान।
धरती कौ भगवान कयें, हम धरती कौ भगवान।।
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(2) श्रम की कहानी
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कौन जानै विदेशी असल बुन्देली बानी।
गाँव और खेतन की सुनियो कहानी।।
उग आयी खेतन में, जुनरी-समारी।
खुरपी सैं गोड़ रई गाँवन की नारी।।
लिख दई अंगुरियन सैं, श्रम की कहानी।
गाँव और खेतन की सुनियो कहानी।।
चँहक र्रइं मैंड़न पै गलगलियाँ कारीं।
सखियाँ मिल गाय र्रइं, गाँवन की गारीं।।
लँहगा गुलाबी ओढ़ लुंगरा रंग धानी।
गाँव और खेतन की सुनियो कहानी।।
सरसौं नै बाँध लई, दुल्हा की पगिया।
राई नै ओढ़ लई, पीरी चुनरिया।।
नाच उठी खेतन कै राजा की रानी।
गाँव और खेतन की सुनियो कहानी।।
पुरवा के झूला पै नन्हीं फुहारैं।
उठ र्रइं हिमालय सैं ठण्डी बहारैं।।
चुनरिया भीगी रें अंगिया जुरानी।
गाँव और खेतन की सुनियो कहानी।।
मुंय में वे हरिहर, हांतन में हँसिया।
मूंड़ी पै घैला है, काँधे गूंदरिया।
मेट दई आलस की नाम और निशानी।
गाँव और खेतन की सुनियो कहानी।।
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उरई जिला-जालौन

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

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