फोड़ा


लघुकथा / जुलाई-अक्टूबर 08 /
-----------------------------
कमल चोपड़ा



जमीन पर बिछी हुई बोरी पर लेटा हुआ मन्नू बार-बार करवटें बदल रहा था। पास ही झिलंगी सी चारपाई पर लेटा हुआ बापू थोड़ी-थोड़ी देर बाद दर्द से कराह उठता था। बापू के लिए यह बात समझ पाना मुश्किल नहीं था कि भूखा होने के कारण मन्नू को नींद नहीं आ रही है।
कई दिन से काम पर नहीं जा पाया था बापू। पीठ पर फोड़ा निकला हुआ था। उसका काम ही पीठ पर लादकर बोरी ढोने का था। काम बन्द तो आमदनी बन्द। पीठ से ज्यादा पेट में कोई फोड़ा टीसने लगा तो मजबूर होकर काम पर जाना पड़ा उसे....। अभी वह अनाज की एक भी बोरी ट्रक पर लाद नहीं पाया था कि पट्टे से पैर रपट जाने के कारण नीचे गिर पड़ा, जिससे उसकी टाँग की हड्डी टूट गई थी। मालिक ने बस इतना किया कि उसकी टाँग पर प्लास्टर चढ़वाकर उसे घर भिजवा दिया था।
रोज कुआँ खोदकर रोज पानी पीने वाला मामूली पल्लेदार था वह। पीठ पर फोड़ा था ही, ऊपर से टाँग की हड्डी और टूट गई। आमदनी बन्द, ऊपर से इलाज का खर्चा। दो साल पहले उसकी बीबी हैजे से न मरी होती तो लोगों के घरों का चैका बर्तन करके किसी तरह उन बाप-बेटे को संभाल लेती पर....।
फोड़े, भूख और टूटी हड्डी के दर्द को बर्दाश्त करने की कोशिश करते करते बाप की आँखों से पानी बहने लगा था। दिहाड़ीदार के हाथ-पाँव सलामत रहें तो ठीक वर्ना.... टूटी रीढ़ वाले कुत्ते से भी बदतर हालत हो जाती है उसकी। कोई उम्मीद, कोई हिफाजत, कोई सहारा कुछ भी नहीं।
हाथ बढ़ाकर बापू ने नीचे बोरी पर लेटे हुए मन्नू के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा-‘‘नींद नहीं आ रही? भूख लगी है ना?’’
एकदम से उठकर बैठ गया मन्नू-‘‘नहीं बापू, भूख तो लगी थी पर मैंने पेट भर के खूब सारा पानी पी लिया। देखो अब मेरा पेट तो भरा हुआ है।’’
तड़फकर रह गया बापू-‘ये छोटा सा बच्चा। अभी से बर्दाश्त और दरगुजर करना सीख गया है। इतनी सी उम्र में मजबूर होकर ‘हार’ जाना सीख गया है, बड़ा होकर क्या कर पायेगा? एक इसी से कुछ उम्मीदें थीं लेकिन यह भी।’ विवश होकर बाप कलपने लगा था। ‘गाँव में था तो प्रधान के खेतों पर पसीना बहाकर अन्न उपजाता था। तब भी यही हालत थी। गाँव से शहर आया। यहाँ अनाज की बोरियाँ ट्रकों में चढ़ाता उतारता है। अब भी यही हालत है। खेतों और गोदामों में रहने के बावजूद भूख। अब यहाँ से कहाँ जायें?’
‘‘बापू गोदाम वाले लाला की टाँग पर चोट लग जाये तो उसे तो खाने को मिलता रहेगा ना? उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा? बापू लोग तो कहते हैं जो बोता है वही काटता है, लेकिन बोता मजदूर है और काटकर खाता है लाला। बापू ऐसा क्यों नहीं होता, जो बोये वही काटे, वही खाये?’’

------------------------------------------

1600/114, त्रिनगर,
दिल्ली-35

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

  © Free Blogger Templates Photoblog III by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP