दो बाल कवितायें



बाल कविताएँ
/ जुलाई-अक्टूबर 08
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अंजू दुआ जैमिनी



(1) शिक्षा
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शिक्षा इंसान को पहचान दिलाती,
जीने का सही ढंग सिखाती।
भिन्न-भिन्न गुणों को प्रेम से,
डाल-डाल पर खिलना सिखाती।
विद्या को पाने विद्यार्थी,
विद्या के मन्दिर में आते।
माता-पिता की उंगली थामे,
गुरुजनों को शीश नवाते।
अध्यापकगण को शत-शत नमन,
भले-बुरे में भेद बतलाएँ।
राह का बन कर दीपक शिक्षा,
उजियारा चहुँ ओर कर जाएँ।
नेहरू, गाँधी, भगत, सुभाष,
प्रेरणादायक इनका इतिहास।
झांसी की रानी बलिदानी,
बहादुरी की कहे कहानी।
अज्ञानता का तिमिर हटाकर,
नित नई इक बात सिखाती।
छत्र-छाया में पलकर इसकी,
हर कली बन फूल महकाती।



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(2) प्रकृति की बारात
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चिड़ियों से चहचहाना सीखो,
भौरों से गुनगुनाना सीखो।
हरे-भरे बाग-बगीचे,
फूलों से महकाना सीखो।
नील गगन की विशालता से,
सबको गले लगाना सीखो।
गगन को चूमती पर्वत शिखाएँ,
चोटी पर चढ़ जाना सीखो।
चुग-चुग दाना खिलाए बच्चों को,
चिड़िया से पालना-पोसना सीखो।
वृक्ष की छाल,फूल-फल, जड़-पत्ते,
बिना मोल सब देना सीखो।
सूरज-चाँद सितारे न्यारे,
दूर भगाते जग के अंधियारे।
इनकी सहृयता की नहीं मिसाल,
रोशनी इनसे फैलाना सीखो।
कंक्रीट के जंगल जहाँ-तहाँ,
नंगी-बुची धरती रोती।
न काटो इन वृक्षों को,
सान्निध्य में इनके मुस्कुराना सीखो।



839 सेक्टर 21सी.,
फरीदाबाद- 121001

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