जागो मानव ....!

कविता ====== मार्च -जून 06

-------------------------------------------------------------

जागो मानव ....!
डा0 हर्षिता कुमार
--------------------------------------------------------------
हे चिर अविनाशी घट-घट व्यापी,
तेरे पूजन को तत्पर हैं सारे दानव,
दिखते नहीं एक भी मानव।
होती जो इनमें थोड़ी सी मानवता,
हृदय इनका भी द्रवित होता, पसीजता।
नहीं हैं ये चिन्तित या शर्मसार,
होता न कभी इनको दुःख अपार।
करते नहीं ये क्षमा याचना भी,
अपने उस अक्षम्य कर्मों की
जो वे करते हैं प्रतिपल।
बहाने में रक्त स्वजनों का,
लगता नहीं उन्हें एक भी पल।
दिखता है उन्हें केवल अपना स्वार्थ,
जानते नहीं वो यह यथार्थ।
कर्म उन्होंने किये जो अब तक,
घटित हों जो उनके संग कल तब;
करेंगे किससे वे फरियाद
कौन सुनेगा इनकी पुकार।
अब भी है वक्त सुधरने का,
दानव से मानव बनने का।
सुन वाणी अपने अन्तर्मन की,
जो है भयभीत, सहमी और डरी।
करो जागृत कि मानवता की
हुई प्रशंसा सदैव से ही।
---------------------------------------------------------------
403, कोयला बिहार (बसुंधरा) वी0आई0पी0 रोड, कोलकाता

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

  © Free Blogger Templates Photoblog III by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP